मैं मिट्टी कुम्हार की, घड़े के सज गए बाजार
कोरोना महामारी में जब बच्चे भावुक हुए तो अपनी मिट्टी से बनी गुल्लक तोड़कर अपने भविष्य के सपनों की अमानत आपदा से बचने के लिए सौंप दी ।
संवाद सहयोगी, गगरेट : कोरोना महामारी में जब बच्चे भावुक हुए तो अपनी मिट्टी से बनी गुल्लक तोड़कर अपने भविष्य के सपनों की अमानत आपदा से बचने के लिए सौंप दी । जब गरीब का कंठ प्यास से सूखा तो अपनी ठंडक से प्यास बुझा दी। यह मिट्टी है कुम्हार की, जिसे जितना रौंदा परिणाम उतना मीठा आया । लॉकडाउन के मौसम में चारों तरफ निराशा आई तो घड़े के बाजार भी सज गए ताकि इसी कुम्हार की मिट्टी को बेचकर घर का खर्च चले ।
जिला ऊना की प्रचंड गर्मी में अधिकतर लोग अब घड़े का पानी पीना पसंद करने लगे हैं तो घड़े बेचने वालों की तादाद भी बढ़ी है । जब से लॉकडाउन हुआ है तब से अधिकतर लोगों नेछोटे छोटे रोजगार चुन लिए ताकि घर का खर्च चलता रहे । ऐसे ही जो लोग अपना परंपरागत कार्य घड़े बनाने और बेचने का था इस संकट की घड़ी में वही काम आ रहा है ।
घड़े के पानी पर अनेक वैज्ञानिक परीक्षण भी हुए है। जानकारों के अनुसार घर में पानी साफ करने वाले यंत्रों से कहीं अधिक सुरक्षित पानी घड़े का पानी है। यदि घड़े में 24 घंटे पानी रह जाता है तो फिल्टर के साथ-साथ इसमें मिनरल भी रह जाते हैं लेकिन घर में लगे अधिकतर वाटर प्यूरीफायर से पानी तो साफ होता है लेकिन उसके साथ मिनरल भी समाप्त हो जाते हैं ।
संघनेई निवासी संजू कुमार ने बताया कि वह फास्ट फूड का कार्य करता था लेकिन अब कोरोना की वजह से लोग फास्ट फूड से परहेज कर रहे हैं। ऐसे में अपना परम्परागत कार्य घड़े बेचने का काम आया। अच्छी सेल हो रही है।