आयुर्वेद के नियम अपनाने से दूर होंगी बीमारियां
जागरण संवाददाता ऊना पंचगव्य डॉक्टर्स एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष भूपिदर सिंह रा
जागरण संवाददाता, ऊना : पंचगव्य डॉक्टर्स एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष भूपिदर सिंह राणा ने कहा कि आयुर्वेद ने मनुष्य जाति को स्वस्थ रहना सिखाया है। आयुर्वेद में भोजन क्रिया को लेकर भी नियम हैं। यदि इन नियमों का पालन किया जाए तो हम कभी रोगी नहीं हो सकते। यहां महत्व इस बात का नहीं है कि आपने कितना भोजन किया है, जो खाया उसमें से कितना पचा पाए हैं, यह महत्वपूर्ण है।
पंचगव्य डॉक्टर्स एसोसिएशन हिमाचल प्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष भूपिदर सिंह राणा ने सोमवार को कहा कि आयुर्वेद के अनुसार भोजन के (छह रस) स्वाद हैं। इनमें स्वादु अर्थात मीठा रस सबसे अधिक बल व सबसे अधिक पोषण देने वाला है, उससे कम अम्ल (खट्टा )उससे कम लवण (नमकीन) उससे कम तिक्त (कड़वा) उससे कम कटु (तीखा /उष्ण) और सबसे कम बल कषाय (कसैला) रस देने वाला है। इसका अर्थ यह है कि चाहे आप घर में भोजन करें या विवाह आदि में भोजन करें इस छह रस सिद्धांत के अनुसार ही भोजन करें। सबसे पहले सबसे बल कारक रस अर्थात मीठा खाना चाहिए, क्योंकि तेज भूख में सबसे पहले सबसे भारी, पोषक भोजन खाना चाहिए, जबकि आजकल हम इसके विपरीत सबसे बलकारक रस अर्थात मीठा रस सबसे अंत में, जठराग्नि मंद होने पर बाद में खाते हैं ,जिससे अपच, गैस, एसिडिटी होती है, यही अधपचा भोजन, डायबिटीज जैसे जटिल रोगों को पैदा करता है। इसलिए डायबिटीज (मधुमेह) से बचना है तो मीठा (स्वीट डिश) भोजन में सबसे पहले खानी चाहिए।