एंटी हेलगन को किफायती बनाए सरकार
जागरण संवाददाता, सोलन : हिमाचल में फसल उत्पादन के लिए ओलावृष्टि प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय कार्यश्
जागरण संवाददाता, सोलन : हिमाचल में फसल उत्पादन के लिए ओलावृष्टि प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला शुक्रवार को डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में शुरू हुई। एंटी हेलगन को किफायती बनाने पर जोर दिया गया। अधिक किसान इसका लाभ ले सकें। पर्यावरण विज्ञान विभाग ने प्रदेश बागवानी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में कार्यशाला आयोजित की। नौणी विवि के कुलपति डॉ. एचसी शर्मा बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे। आरडी धीमान प्रधान सचिव बागवानी और डॉ. एमएल धीमान अतिरिक्त निदेशक बागवानी ने भी कार्यशाला में भाग लिया। इसमें प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, भारतीय मौसम विभाग, डीआरडीओ, आइआइटी बॉम्बे, हैदराबाद के विशेषज्ञ, प्रगतिशील किसान व निजी कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके भारद्वाज ने बताया कि कार्यशाला का उद्देश्य ओलावृष्टि की घटनाओं की मौजूदा स्थिति और पर्वत पारिस्थितिकीय तंत्र पर इसके प्रभावों पर चर्चा करना है। ओलावृष्टि प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
डॉ. एचसी शर्मा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन दुनिया में हो रहा है। भविष्य में अच्छी खेती के लिए हमें तैयारी करने की आवश्यकता है। उन्होंने किसी क्षेत्र में वर्षा पर हेलगन के प्रभावों का आकलन करने के लिए निरंतर डेटा संसाधन की आवश्यकता पर बल दिया। भारत में मेक इन इंडिया के दायरे में स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को देश में सस्ती एंटी हेलगन विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना और इस तकनीक के दीर्घकालिक शोध आकलन पर जोर दिया जाना चाहिए।
दूसरे सत्र में हिमाचल में फसल उत्पादन पर ओलावृष्टि के प्रभाव पर क्षेत्रीय एमईटी केंद्र शिमला के निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह और आइएमडी के डीजीएम डॉ. आनंद शर्मा ने ओलों का बनना और इससे जुड़े कुमुलोनिंबस बादलों के बारे में बताया। डॉ. आनंद शर्मा ने कहा कि हर साल दुनियाभर में ओलावृष्टि के कारण अरबों डॉलर से भी ज्यादा का नुकसान होता है। उनका मानना था कि ओलावृष्टि की विशिष्ट भविष्यवाणी बहुत मुश्किल है और एक चुनौती जिसके लिए और अनुसंधान की आवश्यकता है। उन्होंने ओलों के निर्माण की संभावना की भविष्यवाणी करने के लिएए क्षेत्रों के लिए माइक्रोस्केल मॉडल विकसित करने और राज्य में रडार स्थापित करने का सुझाव दिया। उन्होंने सिल्वर आयोडाइड और एंटी हैलगन के उपयोग के माध्यम से मौसम संशोधन जैसे शमन रणनीतियों पर भी चर्चा की।
डॉ. मनमोहन सिंह ने बताया कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में मार्च, अप्रैल और मई में ओलावृष्टि की घटनाओं की विविध आवृत्ति कैसे थी। यह भी स्पष्ट किया कि सभी कुमुलोनिंबस बादलों में से केवल एक तिहाई से एक चौथाई ही ओलावृष्टि करते हैं। उन्होंने मौसम डेटा के प्रसार के विभिन्न तरीकों पर भी चर्चा की। कोटखाई के खानरी क्षेत्र में एक गैर सरकारी संगठन के साथ काम करने वाले एक किसान ने उनके क्षेत्र में एंटीहैल गन के उपयोग के संबंध में तकनीकी मार्गदर्शन की कमी की बात कही। एंटीहैल गन के रखरखाव की कमी और एंटीहैल नेट की उच्च लागत के बारे में भी किसानों ने बताया।