फेरबदल कर बीज पाले से बचाएं फसल
सोलन जिला में बारिश व बर्फबारी के बाद से पाला पड़ रहा है। इससे जहां फसलों को नुकसान होता है लोगों को भी ठंड का सामना करना पड़ता है। नौणी विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के कषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. मोहन सिंह जॉगड़ा पाला से फसलों को नुकसान कारण व बचाव को लेकर एडवाईजरी दी है। उन्होंने बताया कि जब पृथ्वी के धरातल व वायु का तापमान गिर कर इस सतर तक पहुंच जाए कि जमीन की सतह या दूसरे खुले सतहों पर वायुमंडल की नमी संघनित होकर क्रिस्टलीय बर्फ के रूप में जम जाने को पाला कहते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर ओस व कोहरा फसलों के लिए लाभदायक ही होते है लेकिन पाला सदा नुकसानदायक व घातक होता है।
संवाद सहयोगी, सोलन : सोलन जिला में बारिश व बर्फबारी के बाद से पाला पड़ रहा है। इससे जहां फसलों को नुकसान होता है लोगों को भी ठंड का सामना करना पड़ता है। औद्योनिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. मोहन सिंह जॉगड़ा ने पाले से फसलों को बचाने के लिए किसानों व बागवानों को सलाह जारी की है।
उन्होंने बताया कि उतरी ढलान पर 2200 मीटर तक की ऊंचाई तक बागवानी के लिए स्थान का चुनाव करना चाहिए। समतल घाटियां बागवानी के लिए अनुपयोगी मानी जाती है क्योंकि ये पाला संभावित क्षेत्रों में आती हैं। अत: ऐसे स्थानों की अपेक्षाकृत ऊंचाई वाले स्थान जहां हवा का आगमन आसानी से होता है, चयन करना चाहिए। कुछ फसलें जैसे सब्जियां आदि के बीजने के समय में फेरबदल कर भी फसलों को पाले के प्रकोप से बचाया जा सकता है। जिस रात आसमान साफ व शांत हो और हल्की व ठंडी हवा बह रही हो उस रात पाला पड़ने के अधिक आसार होते है। स्थिति का अंदाजा लगाकर अपनी फसलों में सिचाई लगाए। सब्जियों में तो 3-4 दिन के बाद सिचाई करनी चाहिए। खेत के बाहर घास-फूस में आग लगाकर धुआं करें। छिड़काव सिचाई प्रणाली से फसलों के पत्तों पर पानी की परत बनाकर भी पाले के प्रकोप से बचाया जा सकता हैं। इस प्रणाली द्वारा थोड़े पानी से अधिक पौधों/फसलों को बचाया जा सकता है। प्लास्टिक, कपड़े, कागज, गत्ते, टोकरी, घास-फूस वर टाट आदि से छोटे पौधों, नर्सरी, सब्जियों आदि को शाम को ढक दें और सुबह हटा दें। ऐसा करने से इन का तापमान हिमांक से नीचे नहीं जाएगा तथा पाले से पौधे बच जाएंगे।