देश को राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज मिले, लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं
देश तब बनता है जब उसका संविधान बन जाता है। हमारा देश 1947 मे देश आजाद हो गया था लेकिन एक राष्ट्र 26 जनवरी 1949 को तब बना जब भारत की संविधान सभा ने ्रसंविधान को अंगीकृत किया था। हमें संविधान मिला राष्ट्रगीत व राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज मिला लेकिन हमें राष्ट्रभाषा नही मिली। भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 से लेकर 351 तक राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान किए गए थे लेकिन वो स्थान नही मिला जो मिलने चाहिए थे। हिदी के लिए देवनागरी लिपि मिली लेकिन अंक
मनमोहन वशिष्ठ, सोलन
देश को अपना संविधान, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज मिला, लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं मिल पाई। हिदी के लिए देवनागरी लिपि मिली, लेकिन अंक रोमन के मिले। आज की पीढ़ी को हिदी के अंकों का भी पता नहीं है। हिदी के साथ ऐसा अन्याय पिछले 70 वर्षो से हो रहा है। ये शब्द साहित्यकार डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा(अरुण) ने हिमाचल प्रदेश के सोलन में शनिवार को हिदी साहित्य सम्मेलन-प्रयाग के 72वें अधिवेशन एवं परिसंवाद के दूसरे दिन बतौर सभापति अभिभाषण में कहे।
बकौल डॉ. योगेंद्रनाथ, संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान किए गए थे, लेकिन हिदी को वो स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था। महात्मा गांधी ने हिदी के लिए काफी प्रयास किए और लोगों को हिदी में ही अंग्रेजों के सामने बात करने व लिखने के लिए कहा था। लेकिन उस समय के राजनेताओं ने इसे भुलाए रखा। अब समय बदल रहा है और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिदी में ही विदेशों में भी भाषण देते हैं। हिदी के लिए यह स्थिति अनुकूल बन रही है। जिस तरह कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, उसी तरह हिदी को राष्ट्रभाषा बनाने बनाना चाहिए।
शाम साढ़े तीन बजे शुरू हुए 'एक राष्ट्र-एक भाषा' सेशन में हिदी को राष्ट्र की भाषा बनाने पर गंभीर चर्चा हुई। इस सेशन में डॉ. प्रेम शर्मा, सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र, सचिव श्याम कृष्ण पांडेय आदि ने इस पर चर्चा की। नेहरू की अंग्रेजियत वाली मानसिकता से हिदी नहीं बन पाई राष्ट्रभाषा
डॉ. योगेंद्रनाथ ने कहा कि 14 सितंबर, 1949 को राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर चली लंबी बहस के बाद यदि संविधान सभा ने एक मत से हिदी को राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया होता तो हिदी के लिए आज ऐसी कठिनाई नहीं होती। पंडित नेहरू की अंग्रेजियत वाली मानसिकता से ही हिदी देश की राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। हिदी पखवाड़े के नाम पर सिर्फ श्राद्ध होता है : डॉ. प्रेम
भाषा एवं संस्कृति विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. प्रेम शर्मा ने कहा कि हर साल 14 सितंबर को हिदी पखवाड़े के रूप में हिदी का सिर्फ श्राद्ध होता है। चीन, जापान, फ्रांस, रूस व जर्मनी आदि देशों में उनकी अपनी भाषा बोली जाती है और वहां विकास भी भरपूर हो रहा है।
प्रबल इच्छाशक्ति हो तो हिंदी बन सकती है राष्ट्रभाषा : डॉ. पृथ्वीनाथ
प्रयागराज से आए भाषाविद् और समीक्षक डॉ. पृथ्वीनाथ पांडेय ने विशिष्ट वक्ता के रूप में कहा कि भारतीयों को एक बीमारी है कि हम दूसरों की लकीरों से छेड़छाड़ करते हैं; दूसरों की बुद्धि की ओर देखते हैं। आज विश्वस्तर पर हिदी का जितना विस्तार है, उतनी अन्य किसी भाषा की नहीं है, उसके बाद भी हम हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिला पाने में समथ नहीं दिखते। प्रबल इच्छाशक्ति हो तो हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकती है। देश को एक सूत्र में बांधने का काम हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में बनाकर करना होगा।