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कमाई के साथ सेहत का भी ख्याल

कहते हैं कुछ बीमारियां बच्चों को जन्म से ही अपने मां बाप से डीएनए में आ जाती हैं। ऐसा ही हाल कुछ हमारे समाज का है। अगर बीमार समाज तैयार करेंगे तो आगे आने वाली पीढ़ी को हम बीमारियों के अलावा कुछ नहीं दे सकते। खाने पीने के उत्पादों में जमकर इस्तेमाल हो रहे यूरिया और पेस्टीसाइड से आज हर तीसरा व्?यक्?ति ग्रसित है ऐसे में हम स्?वस्?थ समाज की कल्पना ही नहीं कर सकते लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने समाज को बदलने की मानों कसम खाई हो। ऐसा ही एक व्यक्?ति जिला सोलन के अर्की विकास खंड में है। यह कुछ समय पहले चाय बेचकर परिवार को गुजारा चलाते थे लेकिन जब पत्नी ने प्राकृतिक खीरा उगाया तो

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 06:51 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 06:24 AM (IST)
कमाई के साथ सेहत का भी ख्याल
कमाई के साथ सेहत का भी ख्याल

विनोद कुमार, सोलन

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खाद्य पदार्थो में इस्तेमाल हो रहे केमिकल से आज हर तीसरा व्यक्ति ग्रसित है। ऐसे में स्वस्थ समाज की कल्पना करना भी मुश्किल है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने समाज को ही बदलने की ठान ली है। ऐसा ही एक शख्स जिला सोलन के अर्की विकास खंड में है। राजेंद्र शर्मा कुछ समय पहले चाय बेचकर गुजारा करते थे, लेकिन पत्नी ने प्राकृतिक खेती से खीरा उगाया तो उन्हें उसका असल दाम समझ आ गया।

इसके बाद डॉ. वाईएस परमार औद्योनिकी एवं वानिकी विवि नौणी सोलन में सुभाष पालेकर को सुनने का मौका मिला। उनसे इतने प्रभावित हुए कि समाज को ही बदलने का प्रण ले लिया। आज वह प्राकृतिक खेती के लिए क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं। उन्होंने क्षेत्र के 100 से अधिक किसानों को इससे जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। वह 1250 स्कवायर मीटर क्षेत्र के पॉलीहाउस में शिमला मिर्च, गोभी, टमाटर व अन्य सब्जियों की प्राकृतिक खेती कर आने वाली पीढ़ी के स्वस्थ की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। राजेंद्र आसपास के क्षेत्र में विभिन्न समूह बनाकर लोगों को प्राकृतिक खेती के गुर भी सिखाते हैं। उन्होंने अपने गांव जाबल में शिव शक्ति कृषक समिति भी बनाई है। वह प्राकृतिक खेती करने में उपयोग होने वाले जीवामृत, बीजामृत आदि तैयार कर लोगों को भी बांटते हैं। कृषि विभाग द्वारा आयोजित इन प्रदर्शनियों में राजेंद्र को अब तक अच्छे उत्पादन के लिए 56 पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्होंने ने 2009 में चाय की दुकान छोड़कर खेती करने का मन बनाया। 2011 में पॉलीहाउस का विस्तार करने के बाद शिमला मिर्च की खेती की। एक पौधे में उनकी औसतन 16 से 17 किलोग्राम फसल हुई। इसके लिए उन्हें 2012 में शिमला के मशोबरा में सर्वक्षेष्ठ किसान का पुरस्कार दिया गया। इस खेती से उन्हें सालाना पांच लाख रुपये की कमाई हो रही है।

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मेरा लक्ष्य पूरे भारत को लोगों को उन्नत और गुणात्मक खेती के लिए प्रेरित करना है। फिलहाल अपने गांव से इसे शुरू कर विकास खंड स्तर तक पहुंचा हूं।

-राजेंद्र शर्मा, प्रगतिशील किसान, जाबल, अर्की।


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