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उत्पादन के लिए तरस रहा एंटी रेबीज वैक्सीन विकसित करने वाला संस्थान

देश में लाखों लोगों को पागल कुत्तों के काटने पर रेबीज से बचाने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन का कसौली स्थित केंद्रीय अनुसंधान संस्थान में पिछले करीब 15 सालों से उत्पादन बंद है। कभी देशभर के लिए सीआरआई से ही एआरवी की आपूर्ति होती थी। केंद्रीय अनुसंधान संस्थान करीब 100 सालों तक इस वैक्सीन का उत्पादन कर लाखों लोगों को रेबीज से बचाता रहा लेकिन वर्ष 2004 से यहां उत्पादन बंद है। हालांकि शिप ब्रेन से बनने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Sep 2019 07:30 PM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2019 06:36 AM (IST)
उत्पादन के लिए तरस रहा एंटी रेबीज वैक्सीन विकसित करने वाला संस्थान
उत्पादन के लिए तरस रहा एंटी रेबीज वैक्सीन विकसित करने वाला संस्थान

मनमोहन वशिष्ठ, सोलन

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देश में लाखों लोगों को कुत्तों के काटने पर रेबीज से बचाने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन (एआरवी) का कसौली स्थित केंद्रीय अनुसंधान संस्थान में पिछले करीब 15 साल से उत्पादन बंद है। कभी देशभर के लिए यहां से ही एआरवी की आपूर्ति होती थी। संस्थान करीब 100 सालों तक इस वैक्सीन का उत्पादन कर लाखों लोगों को रेबीज से बचाता रहा, लेकिन 2004 से यहां उत्पादन बंद है। कभी एंटी रेबीज वैक्सीन बनाने वाला संस्थान आज इसके उत्पादन के लिए तरस रहा है।

हालांकि शिप ब्रेन से बनने वाली एंटी रेबीज वैक्सीन यहां ही विकसित हुई थी। वैक्सीन के आते ही कुत्तों, बंदरों और अन्य जानवरों के काटे जाने पर लोगों को रेबीज का खतरा कम हो गया था। संस्थान में बनने वाले टीके देशभर में मरीजों को मुफ्त लगते थे, लेकिन उत्पादन बंद होने से महंगे दामों पर लगते हैं। कुत्तों व बंदरों के काटने पर पहले एंटी रेबीज सिरम दिया जाता है व उसके बाद कुत्ते को देखकर एआरवी लगता हैं।

दुनिया मे पहले लुईस पाश्चर ने एंटी रैबीज वैक्सीन की खोज की थी जो खरगोश के ब्रेन से बनती थी। यह छोटे स्तर पर बनती थी। भारत में भी चार पाश्चर संस्थान खोले गए थे जिसमें इससे ईलाज होता था। 1900 में कसौली में भी पाश्चर संस्थान खुल गया था। 1905 में केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली की स्थापना हुई। इसके पहले निदेशक डॉ. डेविड सेंपल ने 1911 में एंटी रैबीज वैक्सीन को पहली बार शिप ब्रेन से विकसित किया। इसके बाद सीआरआइ में बड़े स्तर पर इसका उत्पाद शुरू हुआ। इसे सेंपल वैक्सीन भी कहते हैं। उसके बाद कई जगह एंटी रेबीज वैक्सीन बनने लगी। ऐसे बनती थी शिप ब्रेन से एआरवी

डॉ. डेविड सेंपल द्वारा विकसित विधि में पहले भेड़ के दिमाग में रेबीज का इंजेक्शन लगाया जाता था और जब वह चार दिन में पागल हो जाती तो उसके दिमाग को निकाल कर एंटी रेबीज वैक्सीन तैयार की जाती थी। इस वैक्सीन के पहले 14 टीके नाभि के आसपास लगते थे, लेकिन कुछ सालों बाद यह 12 इंजेक्शन लगने शुरू हो गए थे। नाभि के पास लगने के कारण यह काफी पीड़ादायक होते थे। सीआरआइ कसौली 1911 से 2004 तक इसी विधि से एआरवी बनाता रहा। बाजारों में अन्य विधियों से वैक्सीन बनने के कारण अब संस्थान में वैक्सीन का उत्पादन बंद है।

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डॉ. डेविड सेंपल ने 1911 में शिप ब्रेन से एंटी रेबीज वैक्सीन को विकसित किया था। पूरे देश में रेबीज से बचाने के लिए इसका इस्तेमाल 1911 से लेकर 2004 तक होता रहा। अब अन्य विधियों से निजी क्षेत्र में कई संस्थान एआरवी को बना रहे हैं।

-डॉ. अजय कुमार तहलान, निदेशक सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट कसौली।


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