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सड़क से कोर्ट तक लड़ रहीं हैं महिलाओं की लड़ाई, खर्च भी उठाती हैं खुद

सिरमौर की संतोष कपूर पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलवाने के लिए सड़क से लेकर कोर्ट तक लड़ाई लड़ती हैं।

By Edited By: Published: Wed, 02 Jan 2019 04:54 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jan 2019 11:53 AM (IST)
सड़क से कोर्ट तक लड़ रहीं हैं महिलाओं की लड़ाई, खर्च भी उठाती हैं खुद
सड़क से कोर्ट तक लड़ रहीं हैं महिलाओं की लड़ाई, खर्च भी उठाती हैं खुद

नाहन, राजन पुंडीर। आजकल के व्यस्त जीवन में कई इंसान खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं तो सामाजिक सरोकार निभाना उनके लिए दूर की बात है। ऐसे लोगों को प्रेरणा दे रही हैं जिला सिरमौर की संतोष कपूर, जो माह के 25 दिन महिलाओं के बीच रहकर उन्हें जागरूक कर रही हैं। घरेलू या किसी अन्य हिंसा से पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलवाने के लिए सड़क से लेकर कोर्ट तक लड़ाई लड़ती हैं। इसका खर्च भी खुद ही उठाती हैं।

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कांडोकांसर पंचायत के सियातनलोग गांव की रहने वालीं और रामपुर भारापुर-10 वार्ड की जिला परिषद सदस्य संतोष कपूर महिला सशक्तीकरण के लिए काम कर रही हैं। वह अपने सरकारी कार्यालय के अलावा निजी कार्यालय में भी महिलाओं की सहायता के लिए प्रयासरत रहती हैं। अब तक करीब पांच हजार महिलाओं के लिए उन्होंने काम किया है। संतोष कपूर एक या दो नहीं बल्कि 28 साल से महिलाओं को आत्मनिर्भर, सशक्तीकरण, शिक्षित, स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रही हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए केरल में सबसे पहले कुटभश्री योजना शुरू हुई थी।

इसी से प्रेरित होकर उन्होंने जिला सिरमौर में भी महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए प्रयास किए। संतोष वर्ष 1990 में साक्षरता अभियान से जुड़ी थीं और पैतृक गांव नौहराधार के बोगधार में काम किया। उसके बाद 1992 में ज्ञान विज्ञान समिति के समता अभियान से जुड़कर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने लगीं। वर्ष 1994 में जनवादी महिला समिति की सदस्य बनीं और 2004 में राज्य महासचिव व 2013 से लेकर अब तक हिमाचल प्रदेश जनवादी महिला समिति की अध्यक्ष हैं।

 महिलाओं को अधिकार देने की सिर्फ बातें सोशियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट संतोष कपूर का कहना है कि महिलाओं को अधिकार देने की बात तो सभी करते हैं, लेकिन कोई भी सरकार महिलाओं को पश्चिम बंगाल सरकार की तरह पुश्तैनी जमीन में हक नहीं देती। जब तक महिलाओं को किसान क्रेडिट कार्ड पर ऋण मुहैया नहीं करवाया जाता तब तक खेतों में काम करने वाली महिलाएं सशक्त नहीं बन सकती। उनकी माग है कि मनरेगा के तहत कृषि कार्य को जोड़ा जाए।


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