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हिमाचल की सबसे बड़ी झील पर मंडराने लगा खतरा, 13 मीटर रह गई गहराई

हिमाचल की सबसे बडी प्राकृतिक झील श्रीरेणुकाजी पर खतरा मंडराने लगा है, अंतरराष्ट्रीय श्रीरेणुकाजी मेले व आसपास के जंगलों से इसे खतरा उत्पन्न हो गया है।

By Edited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 07:44 PM (IST)Updated: Tue, 04 Dec 2018 03:00 AM (IST)
हिमाचल की सबसे बड़ी झील पर मंडराने लगा खतरा, 13 मीटर रह गई गहराई
हिमाचल की सबसे बड़ी झील पर मंडराने लगा खतरा, 13 मीटर रह गई गहराई

नाहन, जेएनएन हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील श्रीरेणुकाजी की गहराई 13 मीटर से भी कम रह गई है। इसका कारण यहां आने वाले श्रद्धालुओं के खुले में शौच करना व आसपास के जंगलों से बहकर आने वाले रेत व पत्थर हैं। यह दावा भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान देहरादून की टीम ने किया है।

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टीम का कहना है कि झील के किनारे लगने वाले अंतरराष्ट्रीय श्रीरेणुकाजी मेले व आसपास के जंगलों से इसे खतरा उत्पन्न हो गया है। इससे झील का आकार भी सिकुड़ने लगा है। आज तक वैज्ञानिक झील की गहराई मापने में असफल रहे थे। पहली बार इस संबंध में कोई दावा किया गया है। हाल ही अंतरराष्ट्रीय श्रीरेणुकाजी मेले के समापन के दिन वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान देहरादून, एफआरआइ देहरादून, वाइल्डलाइफ जैसलमेर व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से जुड़े वैज्ञानिक के दल यहां पहुंचे थे। टीम से जुड़े कुछ वैज्ञानिक कई वर्ष से हिमालयन रेंज में स्थित इसका गहन अध्ययन कर रहे हैं। झील का महत्व श्रीरेणुकाजी झील धु्रवीय पक्षियों का प्रवास स्थल भी है।

इसे आठ नवंबर, 2005 को अंतरराष्ट्रीय महत्व के कारण रामसर साइट के रूप में घोषित किया गया है। इसके अलावा यह वेटलैंड क्षेत्र भी है। रामसर साइट में हिमाचल की केवल तीन झीलें श्रीरेणुकाजी, चंद्रताल व पौंग झील है। झील में जीवन को खतरा वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र कुमार मीणा ने बताया कि श्रीरेणुकाजी झील से जुड़ी गत वर्ष की स्टडी रिपोर्ट आ चुकी हैं। कोर सैंपल स्टडी में सबसे चिंताजनक विषय न्यूट्रेड लेवल का बढ़ना है। इससे झील का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो जाएगा और यहां पलने वाले जीव जंतु मर सकते हैं। नहीं लिया गया रिवालसर की रिपोर्ट को गंभीरता से प्रदेश की दूसरी बड़ी रिवालसर झील की रिसर्च भी इसी टीम के द्वारा दी गई थी।

बावजूद इसके उस दौरान प्रदेश सरकार ने उस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया था और झील में भारी तादाद में मछलियां मरी थीं। पानी भी पीने योग्य नहीं टीम ने दोनों झील पर किए अध्ययन में पाया कि केल्शियम मेग्निशियम क्लोराइड जैसे विभिन्न भौतिक रासायनिक मानकों की बढ़ती मात्रा से इसका पानी भी पीने लायक नहीं रह गया है। यह मात्र सिंचाई के योग्य ही है। झील में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है। श्रीरेणुकाजी मेले में करीब पांच लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। ये खुले में शौच करते हैं। मानव मल में यूरिया की मात्रा ज्यादा होती है। जब यह जमीन के संपर्क में आता है तो बरसाती पानी के साथ मिलकर झील तक पहुंच जाता है। इससे झील में वनस्पति को भारी मात्रा में नाइट्रोजन मिलता है। जलीय पौधों और वनस्पति के बढ़ने से ऑक्सीजन का लेवल कम हो जाता है।

 झील को बचाने के लिए सरकार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संरक्षण प्लान तैयार करना होगा। इससे झील भी संरक्षित हो जाएगी और लोगों की आस्था भी संस्कारों के अनुरूप बरकरार रहेगी।

-डॉ. नरेंद्र कुमार मीणा, अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक।


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