Himachal: घूमने-फिरने और ट्रेकिंग के हैं शौकीन तो आइए सिरमौर, रोमांच और आस्था को नया शिखर देती है चूड़धार चोटी
नवंबर से 14 अप्रैल तक यात्रा पर प्रतिबंध रहता है। कई पर्यटक अप्रैल से लेकर नवंबर तक ट्रेकिंग के लिए यहां पहुंचते हैं। पर्यटन की दृष्टि से यहां विकास की बहुत संभावना है। कई पक्षियों के अलावा यहां तेंदुआ काला भालू और दुर्लभ कस्तूरी मृग भी पाए जाते हैं।
नाहन, राजन पुंडीर : अगर आप प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत अनछुए पर्यटन स्थलों की यात्रा के शौकीन हैं तो चूड़धार चले आइए। यहां की वादियां जहां अध्यात्म का अहसास देती हैं तो हवा की शीतलता तन-मन को सुकून देती है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के तहत शिवालिक पर्वतमाला की सबसे ऊंची चूड़धार चोटी हिमाचल व उत्तराखंड के लोगों के आराध्य देव शिरगुल महाराज की तपोभूमि है।
आठ से 18 किलोमीटर की चढ़ाई के दौरान प्रकृति अपने विभिन्न रंगों से आपको सराबोर कर देगी। कहीं बुरांस के पौधे तो कहीं बर्फ आपका स्वागत करेगी।
11965 फीट की है ऊंचाई
चूड़धार की ऊंचाई समुद्र तल से 11965 फीट है। स्थानीय लोगों में इसे चुरीचंदनी (बर्फ की चूड़ी) के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव के अंशावतार शिरगुल महाराज की यात्रा हर वर्ष वैशाख संक्रांति (14 अप्रैल) से शुरू होकर मार्गशीर्ष संक्रांति (15 नवंबर) तक चलती है।
हिमपात के बाद नवंबर से 14 अप्रैल तक यात्रा पर प्रतिबंध रहता है। कई पर्यटक अप्रैल से लेकर नवंबर तक ट्रेकिंग के लिए यहां पहुंचते हैं। पर्यटन की दृष्टि से यहां विकास की बहुत संभावना है। कई पक्षियों के अलावा यहां तेंदुआ, काला भालू और दुर्लभ कस्तूरी मृग भी पाए जाते हैं।
ब्रिटिश लेखक की किताब में वर्णन
चूड़धार पर्वत का उल्लेख ब्रिटिश लेखक जान की पुस्तक 'द ग्रेट आर्क' में भी है। किताब में बताया गया है कि चूड़धार चोटी से ही ब्रिटिश सर्वेक्षक जनरल और प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी जार्ज एवरेस्ट ने 1834 के आसपास हिमालय पर्वतों के आसपास कई खगोलीय आंकड़े जमा किए थे। विज्ञानी जार्ज एवरेस्ट के नाम पर ही हिमालय की सर्वोच्च चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट पड़ा है।
छह स्कीइंग प्वाइंट
चूड़धार की तलहटी में करीब 8500 फीट की ऊंचाई में छह स्कीइंग प्वाइंट हैं। सिरमौर जिला के स्कीयर सोमदत्त के अनुसार सरांहटी चोटी पर डेढ़ किलोमीटर तक स्कीइंग का आनंद लिया जा सकता है। पारंपरिक व्यंजन,
ठहरने की उचित व्यवस्था
नौहराधार में ठहरने के लिए लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह, छोटे होटल और होमस्टे हैं। इसके अतिरिक्त यहां के स्थानीय युवाओं ने कैंपिंग साइट भी बनाई है। प्रकृति की गोद के बीच टेंट में ठहरने की सुविधा है। नौहराधार के ढाबों में पर्यटकों को स्थानीय व्यंजन भी परोसे जाते हैं। इनमें पत्थर के तवे पर बनने वाली गेहूं के आटे व चावल के आटे के व्यंजन प्रमुख हैं।
कैसे पहुंचें
अगर चंडीगढ़ की तरफ से चूड़धार आ रहे हैं तो इसके लिए दो रास्ते हैं। पहला चंडीगढ़ से नाहन होते हुए श्री रेणुका जी से नौहराधार पहुंचेंगे। यहां से आप ट्रेकिंग शुरू कर सकते हैं। दूसरा चंडीगढ़ से सोलन-राजगढ़ होते हुए भी नौहराधार पहुंच सकते हैं। अगर देहरादून की तरफ से आ रहे हैं तो विकास नगर-मीनसपुल से होते हुए भी सड़क है। इसके अलावा शिमला से चौपाल होते हुए भी आ सकते हैं।
यहां से शुरू होगी पैदल यात्रा
नौहराधार के अलावा हरिपुरधार, कुपवी, चौपाल, नेरवा और पुलबहाल आदि स्थानों तक वाहनों से पहुंचा जा सकता है। यहां से पैदल यात्रा शुरू होगी। देहरादून से यहां की दूरी 220 किलोमीटर, चंडीगढ़ से 158 और शिमला से चौपाल होते हुए 95 किलोमीटर है। यहां से सबसे नजदीक एयरपोर्ट शिमला, चंडीगढ़ व देहरादून हैं।