नमक के बारे में इतना सब कुछ नहीं जानते होंगे आप, जानना हो तो करें एक नजर इधर
आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों को दूर नहीं किया जा सकता है लेकिन इनकी रोकथाम की जा सकती है।
यादवेन्द्र शर्मा, शिमला। आयोडीन ऐसा खनिज है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है। आयोडीन की कमी से घेंघा, थायरायड आदि रोग हो सकते हैं। अधिकतर लोग यह जानते हैं कि आयोडीनयुक्त नमक सेहत के लिए बेहतर है मगर इसका इस्तेमाल कैसे करना है, यह पता नहीं है। हिमाचल में ऐसे लोगों की संख्या करीब 90 फीसद है। आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों को दूर नहीं किया जा सकता है लेकिन इनकी रोकथाम की जा सकती है। खुले स्थान पर रखने से आयोडीन उड़ जाता है। जिस डिब्बे में नमक रखा जाता है, उसे कभी खुला न छोड़ें क्योंकि ऐसा करने पर कुछ समय में ही आयोडीन उड़ जाएगा।
गर्मी के सपंर्क में आने पर भी आयोडीन उड़ जाता है। दाल को उबालने या सब्जी बनाने के दौरान उसमें कभी नमक न डालें क्योंकि उसमें आयोडीन उड़ जाएगा। दाल या सब्जी बनने के बाद ही नमक डालने से आयोडीन सुरक्षित रहता है।
आयोडीन की कमी से हार्मोन भी प्रभावित
एक व्यक्ति को पूरे जीवनकाल में एक चम्मच आयोडीन की आवश्यकता होती है। लेकिन हमारी थायरायड ग्रंथि में इतनी मात्रा एकत्र करने की क्षमता नहीं होती है। आयोडीन की कमी से थायरायड ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन भी प्रभावित होता है जिससे हाइपोथायरॉइडिज्म हो सकता है। आयोडीन का मुख्य स्रोत आयोडाइज्ड नमक माना जाता है। नमक के अलावा भी कई आहार हैं जिनसे आयोडीन मिल सकता है।
आयोडीन की कमी से नुकसान
-महिलाओं में गर्भपात, मृत शिशु पैदा होना।
-मानसिक रूप से अविकसित, निरुत्साही व बौने बच्चे।
-बच्चे को सामान्य कार्यकलाप करने, बोलने या सुनने में दिक्कत।
-घेंघा रोग, थायरायड। आयोडीन के स्रोत
-पनीर, दूध, छाछ, दही ( -आलू को छिलके सहित उबालकर खाएं।
-सेम की सब्जी (नेवी बीन्स)।
-केला, स्ट्रॉबेरी, अंडे।
-समुद्री शैवाल, कॉड मछली, झींगे, सी-वीड, केल्प।
आयोडीन युक्त पदार्थों का करें सेवन
थायरायड की समस्या के अस्पताल में हर दिन 10 से 15 मामले आ रहे हैं। थायरायड आयोडीन की कमी के कारण होता है। इससे बचने के लिए आयोडीन युक्त नमक व आयोडीनयुक्त पदार्थों का सेवन करें।
-डॉ. एनके महेंद्रू, प्रोफेसर ईएनटी, आइजीएमसी शिमला।
जरूरी है जागरूकता
आयोडीन की कमी का असर उम्र के आधार पर होता है। आयोडीन का इस्तेमाल कैसे करें, इसके लिए जागरूकता जरूरी है।
-डॉ. मंगला सूद, शिशु रोग विशेषज्ञ, आइजीएमसी शिमला।