चहचहाती नहीं पर मेहनत की कहानी सुनाती है मेदराम की यह चिड़िया
लकड़ी की चिड़िया, फूलों की मालाएं और गुलदस्ते बेच खुद्दारी की जिंदगी जीने वाले मेदराम पर यह बात सटीक बैठती है कि मेहनती लोगों के लिए उम्र कभी बाधा नही बन सकती।
शिमला, जेएनएन। मेहनत कर कमाने का जज्बा हो तो उम्र बाधा नहीं बन सकती। जुब्बड़हट्टी निवासी 82 वर्ष के मेदराम पर यह बात सटीक बैठती है। मेदराम मेहनती तो हैं ही, साथ ही विलक्षण प्रतिभा के धनी भी हैं। लकड़ी को खूबसूरत आकार देने के अलावा मेदराम फूलों की मालाएं व गुलदस्ते बेचते हैं। उन्होंने लकड़ी में चिड़िया तराश उसे उड़ने के लिए पंख दिए हैं।
मूलत: किसान मेदराम शौकिया तौर पर लकड़ी से खिलौने बनाने का कार्य करते हैं। उनकी बनाई चिड़िया धागे को खींचने पर पंख फड़फड़ाती है। वह लोगों की मांग पर ही चिड़िया बनाते हैं। लकड़ी की चिड़िया आसमान से बात तो नहीं करती पर मेदराम की मेहनत की कहानी जरूर सुनाती है।
परिवार की कुछ आर्थिक सहायता हो सके इसके लिए वह खेतों में फूल उगाते हैं और फूलों के गुलदस्ते व मालाएं बना कर बेचते हैं। आंखों पर मोटा चश्मा लगाए व ऊंचा सुनने वाले मेदराम कुछ दिनों के अंतराल में राजधानी के शेर-ए-पंजाब के सामने नजर आ जाते हैं। इस उम्र में जब अधिकतर बुजुर्ग शारीरिक
दुर्बलता व बीमारियों के कारण बिस्तर पकड़ लेते हैं, वहीं मेदराम को बेकार व लाचारी पसंद नहीं। वह जुब्बड़हट्टी से शिमला तक 30 किलोमीटर का सफर बस में करने के बाद बस अड्डे से मॉल रोड की खड़ी चढ़ाई चढ़ शेर-ए-पंजाब पहुंचते हैं। हाथ में फूलों का गुलदस्ता व माला पकड़ कर वह राह गुजरते लोगों को
फूल खरीदने के लिए आवाज लगाते हैं। किसी के सामने हाथ फैलाने से अच्छा मेदराम खुद्दारी को मानते हैं। उनके फूल तो कुछ दिन बाद मुरझा जाते हैं, लेकिन उनकी महक लोगों के जहन में लंबे समय के लिए बस जाती है।