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केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट का अहम फैसला

हिमाचल हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ राज्य पुलिस भी जांच कर सकती है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 09:29 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 09:29 AM (IST)
केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट का अहम फैसला
केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट का अहम फैसला

शिमला, रमेश सिंगटा। भ्रष्टाचार निरोधक (पीसी) एक्ट 1988 के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ राज्य पुलिस भी जांच कर सकती है। इसके लिए पुलिस को सीबीआइ को सूचित करना अथवा केस को जांच के लिए उसे (सीबीआइ को) सौंपना जरूरी नहीं होगा। हिमाचल हाईकोर्ट ने इस संबंध में अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला दूसरे मामलों में भी नजीर बन सकता है। 

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न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर ने सुधा गुप्ता बनाम राज्य सरकार के केस में याचिकाकर्ता की याचिका भी खारिज कर दी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पीसी एक्ट में राज्य पुलिस, विजिलेंस को जांच करने की सीबीआइ के बराबर पावर है। न केवल ऐसे मामले राज्य पुलिस के क्षेत्राधिकार में आते हैं बल्कि वह जांच भी कर सकती है। अभी तक रिवायत यही थी कि अगर कहीं केंद्रीय कर्मी को पुलिस अथवा विजिलेंस पकड़ती थी तो तत्काल सीबीआइ को सूचित करती थी। बाद में जांच केंद्रीय एजेंसी के हवाले कर दिया जाता था। ऐसी ही प्रेक्टिस के आधार पर रिश्वतखोरी की आरोपित सुधा गुप्ता ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 

याचिकाकर्ता का केस वरिष्ठ वकील आरके बावा, अजय कुमार शर्मा ने लड़ा। राज्य सरकार की ओर से इसकी पैरवी अतिरिक्त महाधिवक्ता देसराज ठाकुर ने की। कोर्ट ने विजिलेंस की एफआइआर रद करने से इन्कार कर दिया। अब आरोपित के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में केस चलता रहेगा। आरोपित 2012 में केंद्रीय विद्यालय, आइटीबीपी, सराहन, जिला शिमला में प्रिंसिपल के तौर पर सेवारत थीं। नवोदय विद्यालय के एक शिक्षक से अनुबंध रिन्यू करने की एवज में रिश्वत मांग रही थी। 16 फरवरी 2012 को उसे विजिलेंस ने रंगेहाथ गिरफ्तार किया था।

ये रखी दलीलें

याचिकाकर्ता के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि राज्य पुलिस ऐसे मामलों की जांच नहीं कर सकती है। विजिलेंस ने इस केस के पकड़ने की सीबीआइ को सूचना नहीं दी और न ही जांच हैंडओवर की। आरोप लगाया कि यह केस झूठा दर्ज किया गया है क्योंकि शिकायतकर्ता का अनुबंध पीरियड रिन्यू नहीं हो सकता था। उसकी नियुक्ति 9 अप्रैल 2011 से 9 अप्रैल 2012 तक एक साल के लिए वैध थी। जवाब में राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि पुलिस को संसद से पारित एक्ट में जांच करने की पावर है। इससे पीसी एक्ट एक्सक्लूड नहीं है। न ही दिल्ली स्पेशल एस्टेब्लीमेंट एक्ट इससे एक्सक्लूड है। कोर्ट को बताया कि सीबीआइ मैनुअल राज्य पुलिस की पावर को खत्म नहीं करता है।

कई राज्यों में नहीं आने दी सीबीआइ

कई राज्यों में वहीं की सरकारों ने सीबीआइ को जांच के लिए नहीं आने दिया। इनका कहना था कि राज्य की अनुमति के बिना केंद्रीय एजेंसी जांच नहीं कर सकती है। ऐसा उस हालत में होता है जब केंद्र में अलग दल की सरकार हो और राज्य में अलग। इससे कई बार सरकार और जांच एजेंसी के बीच टकराव देखने को मिलता है। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में ऐसा ही टकराव दिखा था। केंद्रीय जांच एजेंसी राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर जांच कर सकती है।

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