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शब्दकोष बने तो बढ़ेगी पहाड़ी

जागरण संवाददाता, शिमला : विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहाड़ी बोलियों को सिखाए जाने के लिए जरूर

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 03:01 AM (IST)Updated: Tue, 20 Mar 2018 03:01 AM (IST)
शब्दकोष बने तो बढ़ेगी पहाड़ी
शब्दकोष बने तो बढ़ेगी पहाड़ी

जागरण संवाददाता, शिमला : विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पहाड़ी बोलियों को सिखाए जाने के लिए जरूरी है का पहाड़ी शब्दकोष बनाया जाए। भाषा एवं संस्कृति विभाग की सचिव डॉ. पूर्णिमा चौहान 19 से 24 मार्च तक आयोजित किए जाने वाले आवासीय पहाड़ी सप्ताह शुरू होने के अवसर पर संबोधित कर रही थीं। डॉ. पूर्णिमा चौहान ने कहा कि पहाड़ी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए पारिभाषिक शब्दावली, बोलियों का मानचित्र, सास्कृतिक परिवेश में बने भवनों के शिल्प, खान-पान की सामग्री, लोक गीतों, लोक गाथाओं, व्यंग्य लोक गाथाओं, लोकक्तियों, मुहावरों आदि पर शोध व अन्वेषण की आवश्यकता है। विभाग पहाड़ी बोलियों के प्रति जागरूक करने के लिए शिक्षा विभाग के सहयोग से पहाड़ी बोलियो की प्रतियोगिताएं का आयोजन भी करवाएगा।

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पहाड़ी सप्ताह के प्रथम सत्र में सोलन जिला के बघाट से संबंध रखने वाले विमल कुमार शर्मा ने 'क्या बघाटी बोली लुप्त होने के कगार पर है' नाम का शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें बघाट रियासत के संयोग और वियोग की अनेक घटनाओं का चित्रण किया गया।

श्रीनिवास जोशी ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सोलन जिला की आबादी जनगणना आकड़े 2001 से 2011 तक के अनुसार 17.4 प्रतिशत बढ़ी, जबकि इस अवधि में प्रदेश की आबादी में कुल बढ़ोतरी 12 प्रतिशत हुई। इससे स्पष्ट होता है कि सोलन जिला के बघाट क्षेत्र में दूसरी संस्कृति और सभ्यता की जनसंख्या के पदार्पण से बघाटी बोली के स्वरूप में भी निश्चित रूप से परिवर्तन आए हैं जिससे बोलियों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है।

रमेश मस्ताना ने कहा कि हिमाचल में प्रचलित कुल 37 बोलियों को लगभग पाच-सात बोलियों के बंधन के साथ बाध कर भाषा का एक रूप दिया जा सकता है। बोलियों को अन्वेषण के माध्यम से आगे बढ़ाया जा सकता है। मोहन राठौर ने कहा कि बोली का अर्थ अपने मन की बात दूसरे तक पहुंचाने का है। जिस माटी में हम पले बडे़ हैं उस माटी की बोली को हम नहीं भूल सकते हैं। सुरेश चंद शर्मा बटोही ने कहा कि बघाटी को राजाश्रय देने का कार्य बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह ने किया। वे बघाटी लोकोक्तियों, मुहावरों, लोक गीतों आदि पर प्रतियोगिताएं करवाते थे तथा विजय हासिल करने वालों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया करते थे। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में साझ फिल्म दिखाई गई। इससे पहले समारोह का आगाज हिमाचल के पारंपरिक वाद्य यंत्रों शहनाई, ढोल, नगाड़ों, करनाल, रणसिंगों की धुनों के साथ किया गया।


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