सब्जियों का राजा स्वाद कम हुआ, उत्पादन ज्यादा
आलू को सब्जियों का राजा कही जाता है।
यादवेन्द्र शर्मा, शिमला
आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। इसका उत्पादन तो लगातार बढ़ रहा है, लेकिन पुराने आलू का स्वाद नहीं मिल रहा है। आज भी लोग पुराने आलू का स्वाद ढूंढ रहे हैं। ढांकरी किस्म के आलू का उत्पादन पांच से सात टन प्रति हेक्टेयर होता था और आज जो किस्में आ रही हैं उनका उत्पादन 40 से 50 टन प्रति हेक्टेयर। नई किस्मों से से उत्पादन में आठ से दस गुणा तक वृद्धि हुई है, लेकिन जो स्वाद ढांकरी आलू का होता था नई किस्मों में नहीं मिल पाता है।
वैज्ञानिकों ने शोध के आधार पर दावा किया है कि रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से आलू के स्वाद में कोई अंतर नहीं आता है, जबकि उत्पादन प्रभावित होता है। हर किस्म के आलू का स्वाद अलग होता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह हर सब्जी के साथ मिल जाता है। इसे बच्चे और बड़े सभी बहुत चाव से खाते हैं। आलू में सबसे अधिक मात्रा में स्टार्च, विटामिन ए और विटामिन डी की मात्रा और प्रोटीन और खनिज पाए जाते हैं। अभी तक आलू की 55 से अधिक किस्में तैयार कर ली गई हैं।
आलू की विशेषताएं, कहां ज्यादा खपत
आलू के कंद में 75.80 फीसद पानी, 16.20 फीसद कार्बोहाइड्रेट, 2.5 से तीन फीसद प्रोटीन, 0.6 फीसद रेशा, 0.1 फीसद वसा और एक फीसद खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। वहीं 100 ग्राम कच्चे आलू में 80 केलोरी ऊर्जा, सूखे आलू में 321 केलोरी और इतनी ही मात्रा में मक्की में 96 केलोरी, चावल में 364, गेहूं में 332 और ज्वार में 342 केलोरी ऊर्जा होती है। बेलारूस में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 653 किलोग्राम आलू की खपत होती है। पोलैंड में यह औसत 467 है, जबकि भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 148 किलोग्राम आलू खाता है।
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छिलके समेत पकाना फायदेमंद
अमूमन आलू को छिलका उतारकर ही पकाया जाता है, लेकिन इसे छिलके समेत पकाना बहुत फायदेमंद होता है। आलू के ज्यादातर पोषक तत्व उसके छिलके के ठीक नीचे होते हैं। ऐसे में गहरा छिलका निकलने पर उसके पोषक तत्व भी निकल जाते हैं। आलू का प्रदेश में उत्पादन, पैदावार
जिला,क्षेत्र हेक्टेयर,उत्पादन टन
शिमला,6000,20000
मंडी,1690,20250
कांगड़ा,1400,17920
लाहुल स्पीति,1200,16000
कुल्लू,1175,14700
ऊना,980,11760
चंबा,800,10000
किन्नौर,700,8750
सोलन,200,2600
हमीरपुर,100,1300
बिलासपुर,30,380 ----------
आलू में रासायनिक खादों का इस्तेमाल करने से भूमि की उपजाऊ क्षमता प्रभावित होती है। प्राकृतिक खेती से जमीन के भीतर बेहत उपज के तत्व कायम रहते हैं। आलू की ढांकरी किस्म में जो स्वाद होता था वह नई किस्मों में नहीं है।
-डॉ. एनके पांडे, प्रमुख, सामाजिक विज्ञान संभाग प्रमुख सीपीआरआइ शिमला
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रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से आलू के स्वाद में कोई अंतर नहीं आता है। यूरिया के इस्तेमाल से यूरिक एसिड नहीं बढ़ता है। हर किस्म के आलू का स्वाद अलग-अलग होता है।
डॉ. ब्रजेश, पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी प्रमुख, सीपीआरआइ शिमला।