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रंगमंच को शौक नहीं, इसे आदत बनाएं

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के चेयरमैन प्रो सुरेश शर्मा नाटक मंचन के लिए शिमला पहुंचे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 06:57 PM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 06:22 AM (IST)
रंगमंच को शौक नहीं, इसे आदत बनाएं
रंगमंच को शौक नहीं, इसे आदत बनाएं

रोहित नागपाल, शिमला

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नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के चेयरमैन प्रो. सुरेश शर्मा नाटक मंचन के लिए शिमला पहुंचे हैं। वह रंगमंच देखने के लिए घटती भीड़ से चिंतित हैं। उनका मानना है कि इस कला को बचाने के लिए इसे शौक नहीं बल्कि आदत बनाएं। आदत जिंदगी भर रहती है, शौक समय के साथ बदल जाते हैं।

प्रो. शर्मा लखनऊ से पढ़े, लेकिन रंगमंच हिमाचल में किया। हिमाचल को कर्मभूमि मानने वाले देश के नामी रंगमंच कलाकार हिमाचल के लिए काफी कुछ करने की इच्छा दिल में दबाए हैं। उन्होंने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में अपने अनुभव साझा किए। प्रो. सुरेश शर्मा ने कहा कि वर्ष 1986 में ही हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में ड्रामा डिपार्टमेंट बनाने का काम चला था, लेकिन क्यों सिरे नहीं चढ़ सका आज तक समझ नहीं आया।

प्रो. सुरेश शर्मा ने मंडी में पहला गैर सरकारी थियेटर और संस्थान 1987-88 में शुरू किया था। यहां विद्यार्थियों को रहने तक की सुविधा है। उनका कहना है कि तीन दशक से खुद के दम पर परिवार सहित इसे चला रहे हैं। इसके बावजूद सरकार इसमें बेहतर संस्थान खोलने का ऑफर दे तो बिना कुछ सोचे रंगमंच को बचाने के लिए इसे सरकार को सौंपने के लिए तैयार हूं। अब समय बदल गया है, उस समय रंगमंच गुमनामी का सबसे बड़ा नाम था। आज तो अभिभावक खुद हमारे पास बच्चों को रंगमंच, थियेटर सीखाने के लिए आते हैं। पहले इस पेशे को ज्यादा अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था।

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सब्र से बेहतर मौके का इंतजार करने वालों को मिलती है सफलता

थियेटर में सब्र सबसे अहम है। संघर्ष के समय जीवन में जिस कलाकार ने नकारात्क सोच नहीं आने दी, वह सफल रहा। सफलता का समय किस्मत पर भी निर्भर करता है, लेकिन नजरिया सकारात्मक रखना सबसे अहम है। शिमला से निकले रोहिताश, हैप्पी, विपिन आदि के बारे में उन्होंने बताया कि अपने लक्ष्य में भटकाव नहीं आने देना चाहिए। इससे सफलता जल्द हासिल करने में मदद मिलती है।

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कर्मभूमि के लिए कुछ करने की इच्छा

देश के सर्वोच्च रंगमंच संस्थान के निदेशक प्रो. सुरेश शर्मा ने कहा कि मैं देशभर में मंडी के नाम से जाना जाता हूं। मेरे नाम के आगे मंडी जरूर लगाते हैं। हिमाचल मेरी कर्मभूमि है। यहां के लिए कुछ कर सकूं, ये मेरा सपना है। अब तीन साल बाद जब सभी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो जाऊंगा तो फिर से हिमाचल और मंडी के लिए कुछ करने की इच्छा है। उन्होंने कहा कि लंबे समय से निदेशक हूं, लेकिन टीम के साथ हमेशा नाटक करना पसंद करता हूं।


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