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वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने में फॉरेंसिक मेडिसन विभाग का अहम रोल

फॉरेंसिक मेडिसन विभाग की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने उसके पति को हत्या का मामला दर्ज कर पकड़ लिया।

By Edited By: Published: Sun, 03 Jun 2018 04:54 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jun 2018 12:56 PM (IST)
वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने में फॉरेंसिक मेडिसन विभाग का अहम रोल

शिमला,  जेएनएन। फॉरेंसिक मेडिसन विभाग अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने और निर्दोषों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोस्टमार्टम के दौरान वैज्ञानिक तरीके से जुटाए साक्ष्य अदालत में दोषी को सजा दिलाने व निर्दोष को रिहा करवाने में अभियोजन पक्ष के लिए बेहद मददगार साबित होते हैं। ऐसा कहना है इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (आइजीएमसी) के फॉरेंसिक मेडिसन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राहुल गुप्ता का। पेश हैं उनके की बातचीत के मुख्य अंश।

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फॉरेंसिक मेडिसन विभाग का मुख्य कार्य क्या होता है?

क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (भारतीय दंड प्रक्रिया) की धारा 174 के तहत अकस्मात प्राकृतिक या अप्राकृतिक मृत्यु के संभावित कारणों को जानने के लिए पोस्टमार्टम करना अनिवार्य होता है। इसी तरह हिरासती मौत, दहेज हत्या, पुलिस गोलीबारी में मौत व जमीन में दबाए गए किसी व्यक्ति के शव को निकालने के बाद मौत की सही वजह जानने के लिए भारतीय दंड प्रक्रिया की धारा 176 के तहत पोस्टमार्टम करना जरूरी होता है। फॉरेंसिक मेडिसन विभाग वैज्ञानिक ढंग से पोस्टमार्टम कर मौत के सही कारणों का पता लगाता है।

कानून से बच रहे अपराधी को सलाखों के पीछे पहुंचाने में आपका विभाग कैसे साक्ष्य जुटाता है, ऐसे किसी बड़े मामले के बारे में बताएंगे?

अभी कुछ हफ्ते पहले कोटखाई से एक महिला का शव पोस्टमार्टम के लिए आया था। उस महिला के पति का दावा था कि उसकी मौत भालू के हमले में हुई है। मुझ सहित डॉ. पीयूष कपिला, डॉ. ध्रुव, डॉ. विनोद भारद्वाज की टीम ने उस महिला के शव के पोस्टमार्टम में पाया कि उस महिला पर भालू ने हमला नहीं किया था, बल्कि उसकी गर्दन पर चाकू से वार किए गए थे। चालीस बार उसकी गर्दन के आसपास चाकू से गोदने के निशान पोस्टमार्टम में पाए गए। फॉरेंसिक मेडिसन विभाग की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने उसके पति को हत्या का मामला दर्ज कर पकड़ लिया। पहले पुलिस सीआरपीसी की धारा 174 के तहत कार्रवाई कर रही थी। ऐसे बहुत से मामले हैं, जिनमें कानून से बचने की कोशिश करने वाले शातिर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने में हमारा विभाग अहम रोल अदा करता है।

क्या कोई ऐसा बड़ा मामला भी है, जिसमें निर्दोष को बचाने में विभाग ने अहम भूमिका निभाई हो?

हालांकि यह मामला अभी अदालत में है। कोटखाई के बहुचर्चित गुड़िया दुष्कर्म व हत्या मामले में पांच आरोपितों को पुलिस ने पकड़ा था। इस बारे में सही वैज्ञानिक तथ्य जुटाने के लिए हमने पीड़िता व आरोपितों के डीएनए नमूने लिए। सीबीआइ के पास मामले की जांच आने के बाद हमारे विभाग की ओर से एकत्र सेंपल का डीएनए टेस्ट दिल्ली की लैब में करवाया गया। इस आधार पर सीबीआइ ने पांचों आरोपितों को निर्दोष पाया और ऐसी रिपोर्ट अदालत को सौंपी है। अभी ये पांचों जेल में हैं और उम्मीद है कि वे अदालत के आदेश पर जल्दी बरी हो जाएंगे। अगर समय रहते विभाग ने डीएनए सेंपल न लिए होते तो ये टेस्ट होना संभव नहीं था। किसी अपराधी को सजा दिलाने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाना उतना मुश्किल नहीं, जितना किसी निर्दोष को आरोपों से बचाने के लिए सबूत इकट्ठा करना है।

क्या कोई ऐसा पोस्टमार्टम आपको याद है, जिसमें मौत के सही कारणों का पता लगाने में अतिरिक्त प्रयास करने पड़े हों?

स्कॉटलैंड की एक युवती की मनाली के सिलांग नाले के पास ट्रेकिंग के दौरान एक पेड़ के नीचे दो साल पहले मौत हो गई थी। मनाली में किए पोस्टमार्टम में मौत के कारणों का पता नहीं चल पाया। ऐसे में उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए आइजीएमसी भेजा गया। मैंने उसके पोस्टमार्टम में गहन अध्ययन करते हुए आइजीएमसी में जो टेस्ट संभव थे सब किए और पाया कि उसकी मौत हृदय गति अचानक बढ़ने की बीमारी अरहाइथेमोजेनिक कार्डियोमायोपेथी के कारण हुई थी। जब यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट स्कॉटलैंड पहुंची तो वहां के स्वास्थ्य विभाग ने उस युवती के सभी फ‌र्स्ट ब्लड रिलेशंस की जांच की तो उसकी 21 साल की बड़ी बहन में भी पैथोजेनिक जीन पाया गया। इस तरह कई बार पोस्टमार्टम से जन्मजात बीमारी का पता लगने से परिवार में उस रोग के फैलने व उपचार में मदद मिलती है।

पोस्टमार्टम के बारे में आम जनता में कई भ्रांतियां हैं। कुछ लोगों का कहना है कि पोस्टमार्टम के दौरान चीरफाड़ डॉक्टर नहीं बल्कि चतुर्थ श्रेणी कर्मी करते हैं?

आम जनता को पोस्टमार्टम को लेकर कोई भ्रांति नहीं पालनी चाहिए। पोस्टमार्टम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच शव की गरिमा का पूरा ख्याल रखते हुए डॉक्टर स्वयं करते हैं। तय वैज्ञानिक मानकों के अनुसार ही चीर-फाड़ की जाती है, डॉक्टर की इच्छा से नहीं कि कोई भी अंग काट दें। अगर फिर भी पोस्टमार्टम के दौरान कोई शव की गरिमा को हानि पहुंचाता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 293 के तहत उसे आरोप साबित होने पर छह महीने तक की सजा हो सकती है।


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