नगर निगम के सत्ता पक्ष में खींचतान
शिमला की स्थानीय सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मौजूदा मेयर कुसुम सदरेट और डिप्टी मेयर राकेश शर्मा का अढ़ाई साल का कार्यकाल बेशक दिसंबर में पूरा होगा। लेकिन इन दोनों पदों के लिए अभी से लॉबिग चल रही है। भाजपा समर्थित पार्षद सत्ता में बैठे नेताओं और पार्टी संगठन के पदाधिकारियों से जुगत भिड़ा रहे हैं। मेयर चाहती हैं कि उसे दूसरा कार्यकाल भी मिले। हालात उनके पक्ष में नहीं हैं क्योंकि सत्ता पक्ष के पार्षद भी उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते हैं। यह बात सरकार और संगठन दोनों को मालूम है। आ
जागरण संवाददाता, शिमला : शिमला की स्थानीय सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मौजूदा नगर निगम की मेयर कुसुम सदरेट और डिप्टी मेयर राकेश शर्मा का ढाई साल का कार्यकाल बेशक दिसंबर में पूरा होगा, लेकिन आजकल इन दोनों पदों के लिए लॉबिग चल रही है। भाजपा समर्थित पार्षद सत्ता में बैठे नेताओं और पार्टी संगठन के पदाधिकारियों से जुगत भिड़ा रहे हैं।
मेयर चाहती हैं कि उसे दूसरा कार्यकाल भी मिले। हालात उनके पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि सत्ता पक्ष के पार्षद भी उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते हैं। यह बात सरकार और संगठन दोनों को मालूम है। आम चुनाव में भी सदरेट को ज्यादा अहमियत नहीं मिल रही है। शिमला विधानसभा क्षेत्र की कमान मंत्री सुरेश भारद्वाज ने अपने हाथों में ले रखी है। नगर निगम के 34 में से 22 वार्डों में प्रचार का प्रमुख जिम्मा वही संभाल रहे हैं, जबकि शेष 12 वार्ड कसुम्पटी विधानसभा के तहत आते हैं। वहां ज्योतिसेन जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। उन्होंने विधानसभा का भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। ऐसे में कुसुम के हवाले कुछ भी नहीं है। नगर निगम में अपनों को संभालने में सफल नहीं हुई हैं। चाबा में जिस तरह से पानी की स्कीम के दौरे के दौरान सियासत हुई, उससे उनका ही पक्ष कमजोर पड़ा है। कई पार्षद नाराज हो गए।
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कितना होता है कार्यकाल
नगर निगम में करीब दो साल पहले पहली बार कमल खिला था। पहले यहां कांग्रेस का ही राज रहा है। हां एक बार शिमला के लोगों ने वामपंथियों को भी लाल सलाम किया था। निगम इतिहास में पहली और आखिरी बार प्रत्यक्ष चुनाव हुए थे। इनमें मेयर और डिप्टी मेयर दोनों पदों पर कामरेड जीते थे। संजय चौहान मेसर और टिकेंद्र पंवर डिप्टी मेयर बने थे। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने फिर से चुनाव की पुरानी प्रणाली बहाल की। रोस्टर के मुताबिक मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल रहता है। मेयर का पद एससी वर्ग के लिए आरक्षित था। जबकि डिप्टी मेयर पर रोस्टर लागू नहीं होता है। ऐसे हालात बने कि इस कुर्सी पर महिला पार्षद को बिठाया गया। कुसुम रोहड़ू से ताल्लुक रखती हैं। शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज का घर भी उसी क्षेत्र में है। पहले उन्होंने भी समर्थन किया। बाद में मेयर और मंत्री की अनबन हो गई।
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कौन है दौड़ में
मेयर पद की दौड़ में कई पार्षद हैं। इनमें डॉ. किम्मी सूद, सत्या कौंडल, संजीव ठाकुर, आरती चौहान, मीरा शर्मा, शैलेंद्र चौहान जैसे पार्षद शामिल हैं। ये लॉबिग तो बड़े पद की कर रहे हैं, लेकिन अगर दाव लगा तो डिप्टी मेयर के लिए पीछे नहीं हटेंगे। अब मेयर का पद ओपन केटेगरी के लिए होगा।
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मंत्री ने की कई बैठकें
शिमला में मंत्री ने कई चुनावी बैठकें की है। इसमें अनाडेल में ही मेयर मौजूद रहीं, बाकियों में नहीं दिखीं। इससे लोगों में सही संदेश नहीं गया है।