ग्लेश्यिर, बावड़ी, तालाब, बगीचों व पेड़-पौधों के अब मैप बनेंगे
हिमाचल के प्राकृतिक संसाधनों की अब मैपिंग होगी।
यादवेन्द्र शर्मा, शिमला
हिमाचल के प्राकृतिक संसाधनों की अब मैपिंग होगी। ग्लेश्यिर, बावड़ी, तालाब, बगीचों व पेड़-पौधों की मैपिंग की जाएगी। कुल्लू जिला की 19 श्रेणियों के आधार पर मैपिंग करने के बाद अब इसके लिए तीन जिलों शिमला, सिरमौर व चंबा का चयन किया गया है।
मैपिंग को लैंड यूज एंड लैंड कवर मैप नाम दिया गया है। इसके आधार पर शोध के साथ जलस्रोतों के सूखने और ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर मंथन होगा। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत इसके लिए राशि का प्रावधान किया गया है। इसी मैपिंग के आधार पर पनविद्युत परियोजनाओं सहित उठाऊ पेयजल योजनाओं व सिंचाई योजनाओं का खाका तैयार किया जाएगा। प्रदेश में अभी तक इस तरह की व्यवस्था नहीं थी। कुल्लू जिला में मैपिंग का कार्य पूरा कर दिया गया है।इसमें सभी प्राकृतिक संसाधनों के साथ सड़कों, नदियों, पेड़ पौधों, मकानों आदि की मैपिंग की गई है कि वे कहां हैं। रिमोट सेंसिंग और जीआइएस तकनीक के आधार पर तीन जिलों में मैपिंग की जाएगी। केंद्र सरकार ने देश की सभी पिछड़ी पंचायतों के लिए एक समान योजनाएं पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए मैपिंग के आधार पर योजनाओं को पहुंचाया जा सकेगा। चंबा के लिए योजनाएं इसी आधार पर बनेंगी। इनकी होगी मैपिंग
जिलों की सीमाएं, नौ गुणा नौ किलोमीटर का ग्रिड, सड़कें, पैदल मार्ग, विकसित क्षेत्र, पुल, पॉलीहाउस, खेल मैदान, कृषि भूमि, हरित क्षेत्र, पौधरोपण, घास के मैदान, पथरीली भूमि, झाड़ियां, खुली व बंजर भूमि, जलस्रोत, बर्फ से ढके क्षेत्र, सूखी नदी, नदी व नाले।
अध्ययन व विकास में मैपिंग उपयोगी
कुल्लू के बाद प्रदेश के तीन जिलों की मैपिंग की जाएगी। इसका उपयोग भविष्य में अध्ययन व विकास के लिए हो सकेगा।
कुणाल सत्यार्थी, सदस्य सचिव, हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद