आपत्तियों के बावजूद जारी हो रहे लैटर ऑफ क्रेडिट
ऐसा माना जाता है कि लोक निर्माण विभाग में लेटर ऑफ क्रेडिट यानि साख पत्र प्रणाली भ्रष्टाचार का बड़ा कारण है। विकास परियोजनाओं के लिए आने वाली बजट की तीस प्रतिशत धनराशि का कोई अता-पता नहीं चलता। इस तरह के सवाल विश्व बैंक ने भी उठाए हैं और प्रदेश सरकार से इस प्रणाली को समाप्त कर नई प्रणाली शुरू करने की सलाह दी है।
प्रकाश भारद्वाज, शिमला
ऐसा माना जाता है कि लोक निर्माण विभाग में लैटर ऑफ क्रेडिट (साख पत्र) प्रणाली भ्रष्टाचार का बड़ा कारण है। विकास परियोजनाओं के लिए आने वाले बजट की करीब तीस फीसद राशि का अता-पता नहीं चलता है। इस तरह के सवाल विश्व बैंक ने भी उठाकर प्रदेश सरकार से इस प्रणाली को समाप्त कर नई प्रणाली शुरू करने की सलाह दी है।
विश्व बैंक ने इस संबंध में प्रदेश के मुख्य सचिव अनिल खाची को पत्र लिखा है। लैटर ऑफ क्रेडिट के तहत चेक से भुगतान किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के महालेखाकार (अकाउंटेंट जनरल) भी इस पक्ष में हैं कि चेक से होने वाला भुगतान बंद किया जाए। इन आपत्तियों के बावजूद लैटर ऑफ क्रेडिट जारी हो रहे हैं। सरकार के वित्त विभाग ने भी इस प्रकार की खामियों को देखते हुए तीन बड़े विभागों लोक निर्माण, जल शक्ति व वन विभाग में लेन-देन की इस व्यवस्था की जगह इसे कोषागार विभाग के साथ जोड़ने या ई-वितरण प्रणाली अपनाने की सलाह दी है। हैरानी इस बात की है कि मंत्रिमंडल की बैठक में आए प्रस्ताव पर कोई मंत्री नई प्रणाली के पक्षधर नहीं थे। इस कारण इस प्रस्ताव पर निर्णय लेने के बजाय इसे टाल दिया गया। पिछले एक साल से लैटर ऑफ क्रेडिट प्रणाली को बंद करने के लिए बैठकों का सिलसिला चल रहा है। सरकार ट्रायल आधार पर भी पायलट प्रोजेक्ट के तहत नई प्रणाली की शुरुआत नहीं कर पाई है। कोषागार प्रणाली के लिए तैयार थे सरकारी विभाग
पिछले साल दो सितंबर को चेक से भुगतान करने के मामले को लेकर बैठक हुई थी। प्रधान सचिव वित्त की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में तीनों सरकारी विभाग चेक से भुगतान की जगह कोषागार (ट्रेजरी) प्रणाली अपनाने के लिए तैयार थे। विश्व बैंक मिशन मध्यावधि समीक्षा करने के लिए शिमला आया और 18 नवंबर से 22 नवंबर तक बैठकें कीं। विश्व बैंक की टीम का कहना था कि देश में अधिकांश राज्य सरकारों ने पारदर्शिता लाने के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट प्रणाली को समाप्त कर दिया है।