रेललाइन के लिए 20 गांवों में भूमि अधिग्रहण शुरू
महत्वाकांक्षी भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी रेल परियोजना का काम शुरू हो गया ह।
राज्य ब्यूरो, शिमला : महत्वाकांक्षी भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी रेल परियोजना का काम शुरू हो गया है। पहले कदम में रेललाइन के लिए 20 गांवों में जमीन अधिग्रहण करने को मंजूरी प्राप्त हो गई है। अब पंजाब व हिमाचल के सीमावर्ती इन गांवों में रेलटैक बनेगा। इसके लिए भूमि अधिग्रहण कार्य शुरू हो गया है।
बैरी तक पहुंचने वाली रेल से 60 किलोमीटर की दूरी तय होगी। इतने लंबे रेलटै्रक का निर्माण करने के लिए 100 गांवों में जमीन अधिग्रहण होगा। पहले चरण में हो रहे भूमि अधिग्रहण पर 100 करोड़ से अधिक पैसा खर्च होगा। रेल परियोजना को लेह तक ले जाने की योजना है। प्रदेश सरकार रेल विस्तारीकरण के मुद्दे को दो दशक से उठाती रही है। 90 के दशक में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भानुपल्ली-बिलासपुर-बैरी रेललाइन का प्रस्ताव तैयार किया था। इसके पीछे केवल एकमात्र कारण था कि बिलासपुर जिला की एसीसी सीमेंट कंपनी से सीमेंट की ढुलाई करने के लिए रेललाइन का विचार आया था। उसके बाद सोलन जिला में दो सीमेंट प्लांट स्थापित हुए। दो जिलों में तीन सीमेंट प्रोजेक्टों से सीमेंट की ढुलाई के लिए इस्तेमाल होने वाले हजारों ट्रकों का दबाव कम करना मुख्य कारण था। सड़कों पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए रेललाइन को पर्यावरण की दृष्टि से अहम साधन माना गया। सबसे पहले वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री रहते इस रेललाइन की मांग को उठाया था। उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने केंद्र के समक्ष सामरिक सुरक्षा के महत्व को इस मांग के साथ जोड़ा। प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र पर लगातार बढ़ते दबाव का नतीजा है कि केंद्र सरकार रेल विस्तार करने के लिए मान गई है। मोदी सरकार में भाजपा सासद अनुराग ठाकुर व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के दबाव के कारण रेल मंत्रालय ने इस रेललाइन के लिए सर्वेक्षण करवाया। पहले चरण में 20 किलोमीटर बनेगी रेललाइन
पहले चरण में 20 किलोमीटर रेललाइन बनेगी। पंजाब के साथ लगते प्रदेश के गांव टोबा स्थान से शुरू होते हैं। बीस गांवों से गुजरने वाले टै्रक पर भूमि अधिग्रहण की लागत के अलावा निर्माण लागत अलग से तय होगी। भूमि अधिग्रहण के लिए होने वाले खर्च में राज्य को 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी चुकानी होगी। शेष खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी। रेल परियोजना की कुल लागत 1047 करोड़ रुपये है। इसमें से प्रदेश को 260 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। भूमि अधिग्रहण पर होने वाले खर्च का 77 करोड़ रुपये केंद्र सरकार वहन करेगी और 28 करोड़ रुपये राज्य सरकार भुगतान करेगी।