पहले घबराए, फिर सामान्य हो गए यात्री
जागरण संवाददाता शिमला कोरोना संकट के चलते 22 मार्च को देशभर में जनता कर्फ्यू के बाद अन्य
शिमला से चंडीगढ़ के लिए सात माह बाद चली बस में बैठी 40 सवारियां
-मास्क पहनने पर अधिकतर दिखे सजग, चालक व परिचालक भी करते रहे आगाह
-अड्डे पर सैनिटाइज की थी बस, ढाबे पर भी स्वच्छता व शारीरिक दूरी के नियम का पालन
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जागरण संवाददाता, शिमला : कोरोना संकट के चलते 22 मार्च को देशभर में जनता कर्फ्यू के बाद अन्य राज्यों के लिए बस सेवा को रोक दिया गया था। करीब सात महीने बाद बुधवार को अंतरराज्यीय बस सेवा बहाल हुई तो माहौल बदला-बदला दिखा। शिमला से चंडीगढ़ के लिए सुबह 10 बजे चली बस में यात्रियों की झिझक के साथ शुरू हुआ सफर थोड़ी ही देर में सामान्य होने लगा।
हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) की इस बस में चालक जुन्नी मुहम्मद व परिचालक सुरेंद्र थे। बस में शिमला से 25 सवारिया बैठीं। सफर शुरू करने से पहले बस को सैनिटाइज किया गया। चालक जुन्नी ने सवारियों को बताया कि मास्क सही तरीके से पहनें। अनावश्यक पाइपों को न छूएं। सुरेंद्र बताते हैं कि सफर की शुरुआत के दौरान सवारियां घबराई दिखीं। लेकिन थोड़ी देर बाद माहौल सामान्य होने लगा। वाकनाघाट तक पहुंचते-पहुंचते बस में सवारियों की संख्या 40 तक पहुंच गई।
दोपहर के खाने के लिए बस को धर्मपुर से आगे सनवारा में ढाबे पर रोका गया। परिचालक ने सबसे पहले उतरते ही साबुन निकाल कर सवारियों के लिए रखा। हर सवारी को हाथ सैनिटाइज करने के लिए प्रेरित किया। कई यात्री कोरोना के खतरे को देखते हुए घर से ही खाना लेकर आए थे। खाना खाने के बाद रवानगी से पहले ही सुरेंद्र ने साबुन दोबारा पैक कर थैले में रख लिया। बस तीन बजकर 42 मिनट पर चंडीगढ़ बस अडडे पर पहुंच गई। वापसी में शाम छह बजे बस चली। इसमें से शिमला के 10 यात्री ही थे जबकि कालका, परवाणू व सोलन की सवारियां भी थीं। सुरेंद्र के मुताबिक पहले दिन चंडीगढ़ तक 8000 रुपये की कमाई हुई। सुविधा से लोग खुश
सात महीने बाद बस सेवा शुरू होने से यात्री खुश दिखे। उनका कहना था कि अन्य राज्यों तक पहुंचने में अब दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। अब लोगों को भी जिम्मेदारी समझते हुए एहतियात बरतनी चाहिए। कुछ नया सा था अनुभव
परिचालक सुरेंद्र कुमार ने बताया कि लंबे समय से दिल्ली व दूसरे राज्यों तक सेवाएं देते रहे हैं। लेकिन सात माह बाद शुरू हुआ सफर अपने आप में नया अनुभव था। सफर के दौरान पहले की तरह आपाधापी नहीं दिखी। लोगों का व्यवहार संयमित रहा। अधिकतर सवारियों ने भी अपनी जिम्मेदारी को समझा, दो-तीन लोगों को ही बार-बार मास्क ठीक करने के लिए कहना पड़ा। हमने भी सवारियों को बस के सैनिटाइजेशन से लेकर मास्क पहनने की जानकारी मुहैया करवाई। ढाबा मालिक को विशेष तौर पर हिदायत दी गई थी कि लोगों को शारीरिक दूरी के साथ और पूरी सफाई बरतते हुए खाना परोसा जाए। संक्रमण से बचाने का भी जिम्मा
सुरेंद्र कहते हैं, 'टिकट काटना शुरू से ही मेरा काम था, लेकिन पहली बार अहसास हुआ कि लोगों को संक्रमण से बचाने का जिम्मा भी मेरे ऊपर ही है। बस में सवारियों की संख्या बढ़ने के साथ जिम्मेदारी भी बढ़ती रही।'