बंदरों को भगाने के लिए रखो डंडे व गुलेल चलाने वाले
राज्य ब्यूरो, शिमला : जाखू मंदिर जाने वाले पर्यटकों को पहले उत्पाती बंदरों का सामना करना पड
राज्य ब्यूरो, शिमला : जाखू मंदिर जाने वाले पर्यटकों को पहले उत्पाती बंदरों का सामना करना पड़ता है। उसके बाद मंदिर में प्रवेश करने पर ही बंदरों से राहत मिलती है। पर्यटकों की परेशानी को समझते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार व नगर निगम को सुझाव दिया है कि डंडे व गुलेल चलाने वाले स्वयंसेवी रखें। ऐसा करने से शिमला घूमने के लिए आने वाले पर्यटक बंदरों के खौफ के बिना प्रकृति का आनंद ले सकेंगे। जाखू मंदिर के साथ-साथ रिज मैदान से लेकर कालीबाड़ी तक और वहां से नीचे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से होते हुए मालरोड तक वॉकर पैराडाइज सर्किट बनाने का भी सुझाव दिया है। डंडेवाले व गुलेल चलाने के लिए स्वयंसेवी रखे या फिर गैर सरकारी संस्थाओं की मदद लें। इन स्थानों पर जगह-जगह संगीत बजाने की व्यवस्था होनी चाहिए। लोगों को प्यास लगे तो शुद्ध पानी के एटीएम लगाए जाएं। रानी झांसी पार्क में भी सुबह व शाम को सुरक्षा की व्यवस्था अनिवार्य की जानी चाहिए। यहां पर स्थानीय लोग सैर करने के लिए आते हैं।
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नकारात्मक भी होता है प्रचार
यह भी देखने में आया है कि शिमला घूमने के लिए आने वाले लोगों का जब बंदरों व कुत्तों से सामना होता है तो पर्यटक लौटने पर जान पहचान वालों में नकारात्मक प्रचार करते हैं। न्यायालय ने टिप्पणी की है कि जाखू मंदिर में तो बंदर चश्मा पहनने वाले पर नजर रखते हैं और झपटकर चश्मा छीन लेते हैं। ऐसे में पर्यटकों को सुरक्षित हनुमान जी के दर्शन करवाने के लिए सहायक होना जरूरी है। रोजाना जाखू मंदिर में दो हजार पर्यटक आते हैं और सप्ताह के अंत के दिनों में पर्यटकों की संख्या पांच हजार तक बढ़ जाती है।
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वॉकर पैराडाइज सर्किट बनाएं
रिज मैदान से होते हुए स्केंडल प्वाइंट और वहां से कालीबाड़ी मंदिर और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से वापस होते हुए मालरोड को शामिल करते हुए वॉकर पैराडाइज सर्किट बनाया जा सकता है। जहां पर बंदरों को भगाने के लिए डंडेवाला व्यक्ति जगह-जगह खड़ा हो। इसी तरह से बंदरों को आता देख गुलेल से भगाने वाले भी लगाए जा सकते हैं।