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जानिए, हिमाचल प्रदेश में किसके सिर सजेगा सेहरा

मतगणना से पहले राज्य के प्रत्याशियों की धड़कने भी बढ़ी हैं तो वहीं जीत से आश्वस्त नेता बाजे-गाजे की तैयारी कर चुके हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 17 Dec 2017 04:36 PM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2017 10:40 PM (IST)
जानिए, हिमाचल प्रदेश में किसके सिर सजेगा सेहरा
जानिए, हिमाचल प्रदेश में किसके सिर सजेगा सेहरा

शिमला, डॉ. रचना गुप्ता। लंबे इंतजार के बाद हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। इन परिणामों के जरिए कांग्रेस में वीरभद्र सरकार की जहां एक ओर कारगुजारी की परीक्षा होगी, वहीं दूसरी ओर 'नमो' के द्वारा हिमाचलियों से किए विकास के वादों की कसौटी पर प्रेम कुमार धूमल को खरा उतरने का दम भरना होगा। मतगणना से पहले राज्य के प्रत्याशियों की धड़कने भी बढ़ी हैं तो वहीं जीत से आश्वस्त नेता बाजे-गाजे की तैयारी कर चुके हैं।

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सर्वे के एलानों से उत्साहित भाजपा, कांग्रेस को उलझन में भले ही डाल रही हो, परंतु मैदान में उतरे हर प्रत्याशी को फिलहाल 24 घंटों का इंतजार है, भले ही वह किसी भी पार्टी का हो। 13 वीं विधान सभा में प्रदेश के दो प्रमुख दलों, भाजपा और कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री चेहरे पेश किए हैं। भाजपा से प्रेम कुमार धूमल हैं तो वहीं कांग्रेस से वीरभद्र सिंह। दोनों ही राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं, वहीं पहले भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वीरभद्र 6 बार और धूमल दो बार। अबकी बार भी दोनों में से एक को प्रदेश की कमान को संभालना है। इसलिए इस चुनाव में जिनकी पार्टियों के ज्यादा से ज्यादा एमएलए जीतकर आएं यह वयक्तिगत तौर पर उनके राजनीतिक कद का आकलन भी करवाएगा।

धूमल के लिए चुनौती 

खास तौर पर भाजपा से प्रेम कुमार धूमल के लिए, क्यों कि मतदान से कुछ दिन पूर्व में ही उनके नाम का एलान सीएम के पद के लिए हुआ था और भाजपा को 50 के तय लक्षय के अनुरूप सीटों की दरकार थी। ऐसे में सीटों के इस लक्ष्य को छूना, धूमल की कसौटी रहेगा। जबकि कांग्रेस में पार्टी के तमाम विरोंधों के बावजूद वीरभद्र के चेहरे पर ही हाईकमान ने विश्वास जताया था, ताकि सता दोहराई जा सके। सिंह को भी अपनी दहाड़ का अहसास 18 के नतीजे दिलाएंगे। 83 की उम्र के पड़ाव में जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता उस दौर में परखी जाएगी, जब वह अपने इकलौते बेटे विक्रमादित्य का राजनीतिक भविष्य स्थाप्ति करना चाह रहें हैं।

          

वोटो के अंतर को बढ़ाना भाजपा के लिए चुनौती

यूं इस बार प्रदेश में आठ ऐसे नेता हैं, जो पारिवारिक विरासत को संभाले हुए मैदान में हैं। परंतु आधी आबादी, महिलाओं से मत प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों के महिला तरजीह के दावों के विपरीत इस बार 68 में से सिर्फ सात महिला उम्मीदवार मैदान में है। हालांकि गत चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के मत प्राप्ति का प्रतिशत बहुत अंतर वाला नहीं रहा और औसतन 4 से 5 प्रतिशत के बीच फासला रहा। लेकिन चूंकि इस बार यदि हिमाचल में मोदी लहर की बात करें और भाजपा का सीटों का लक्ष्य देखें तो मतांतर को काफी बढ़ाना भी भाजपा की चुनौती होगा।

         

कांग्रेस को 1993 में मिली थी सबसे ज्यादा सीटें

यूं सीटों की प्राप्ति पर गौर करें तो भाजपा ने वर्ष 1990 में 52 सीटें लीं थीं और फिर 2007 में 42 सीटों की प्राप्ति हुई थी, जबकि कांग्रेस ने सबसे ज्यादा सीट प्राप्ति वर्ष 1993 में 52 थीं। यह वह समय था, जब कांग्रेस ने हिमाचल में अब तक की सबसे ज्यादा 52 सीटें प्राप्त की थीं। इस तरह 18 दिसंबर की मतगणना में ताज किसके सिर सजेगा, यह खुलासा होगा।

वहीं, सीएलपी नेता के चयन के साथ ही मंत्रिपरिषद में स्थान पाने के लिए जातीय, वरिष्ठता, क्षेत्रीय व लिंग आधारित समीकरणों पर जद्दोजहद होगी। गत चुनावों की भांति 39 दिनों से बंद इवीएम बर्फानी ठंड में न जमें, इसका इंतजाम भी चुनाव आयोग को बखूबी देखना होगा।

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