हिमाचल में आसमान से बरस रही आफत, जमीन भी सुरक्षित नहीं
हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही है। इसके अलावा भूकंप के झटके भी बार बार इस पहाड़ी प्रदेश को डरा रहे हैं।
शिमला [मुनीष दीक्षित]: हिमाचल के जिन पहाड़ों को प्रकृति सौंदर्य का खजाना माना जाता है। वहां अब सब ठीक नहीं है। कुछ सालों से भूकंप की कंपन जहां बार-बार चंबा से लेकर किन्नौर तक अपनी दस्तक देकर इस पूरे इलाके को जोन पांच में होने का एहसास करवा रही है। तो आसामान से बादल फटने के रूप में बरस रही आफत अब आम होने लगी है। पहाड़ दरकने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है और प्रदेश की नदियों को मूल राह से सुरंगों के जरिए कहीं और ले जाने की कवायद के बाद यहां की नदियां नाले भी गुस्से में कब आए जाएं कोई नहीं जानता। केवल इसे प्रकृतिक कारण मानकर ही इसे मुआवजे के मरहम से भरने की परिपाटी चल रही है।
वर्ष 1905 में प्रदेश में हुए सबसे बड़े भूकंप के बाद से हिमाचल ने अस्सी के दशक में किन्नौर में उससे कुछ कम भूकंप की कंपन से नुकसान हुआ था। उसके बाद हर साल भूकंप पूरे प्रदेश में छोटे झटकों से अपने होने का एहसास तो करवा रहा है, लेकिन अभी सब सकुशल बना हुआ है।
लेकिन हिमाचल प्रदेश मौजूदा समय में जिस भय के बीच से गुजर रहा है, वो भय है बादल फटने की घटनाओं का। चार दशक से प्रदेश में बादल फटने की घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। अब तक बादल फटने की घटनाओं में हजारों लोग व पशु मौत के मुहं में जा चुके हैं। हिमाचल के चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, लाहुल
स्पीति, किन्नौर व शिमला जिले बादल फटने की घटनाओं के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हो चुके हैं। इन जिलों में बादल फटने के अलावा पहाड़ों का खिसकना, भूस्खलन होना और बर्फ का कम गिरना भी कई संकेत दे रहा है। लेकिन विकास के नाम यहां के पहाड़ों व नदियों नालों से खिलवाड़ जारी है।
क्या है बादल फटना
बादल फटने का मतलब बादल के दो टुकड़े होना नहीं होता है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक जब एक जगह पर बहुत ही कम समय में अचानक भारी बारिश आ जाती है तो उसे ही बादल फटना कहते हैं। आप इसे इस तरह समझ सकते हैं कि अगर पानी से भरे किसी गुब्बारे को फोड़ दिया जाए तो सारा पानी एक ही जगह तेज़ी से नीचे की ओर गिर जाता है। ठीक उसी तरह बादल फटने की घटना में पानी से भरे बादल की बूंदें अचानक जमीन की तरफ आती हैं। बादल फटने को फ्लैश फ्लड भी कहा जाता है। बादल फटने की घटना तब होती है जब काफी ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह पर रुक जाते हैं और वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिलने लगती हैं। बूंदों के भार से बादल का घनत्व काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है। बादल फटने पर 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बारिश हो सकती है। बहुत कम समय में भारी बारिश होने को ही बादल फटना कहते हैं लेकिन यहां ये सवाल उठता है कि बादल फटने की घटना अक्सर पहाड़ों पर ही क्यों होती हैं?
क्यों फटते हैं पहाड़ों पर बादल?
वैज्ञानिकों की मानें तो इसकी वजह है पानी से भरे बादल पहाड़ी इलाकों फंस जाते हैं। पहाड़ों की ऊंचाई की वजह से बादल आगे नहीं बढ़ पाते और फिर अचानक एक ही जगह पर तेज़ बारिश होने लगती है। चंद सेकेंड में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है। पहाड़ों पर 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर बादल फटते हैं। यहां बादल फटने की घटनाएं धौलाधार, पीरपंजाल और हिमालय रेंज में सबसे अधिक बादल फटने की घटनाएं होती हैं।
पहाड़ों पर बादल फटने से इतनी तेज बारिश होती है जो सैलाब का रूप ले लेती है। पहाड़ पर बारिश का पानी रूक नहीं पाता इसीलिए तेजी से पानी नीचे की तरफ आता है और नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़े साथ लेकर आता है। ये कीचड़ वाला सैलाब काफ़ी भीषण होता है जो अपने रास्ते में पड़ने वाले हर एक चीज़ को अपने साथ लेकर आगे बढ़ता जाता है।
हिमाचल में बादल फटने की घटनाएं
बरसात का शायद ही कोई ऐसा मौसम होगा जब हिमाचल में बादल फटने और मूसलधार बारिश से भू-स्खलन के कारण जानमाल के नुकसान की खबरें सुर्खियां न बनी हों। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में बादल फटने के बाद सोन खड्ड में बाद आ जाने से धर्मपुर में पांच लोगों को जान गंवानी पड़ी और करोड़ों की संपत्ति को नुकसान हुआ था। यहां एक पूरा बस अडडा व बसें पानी में समां गई थी। वर्ष 2001 में बैजनाथ में बादल फटने की भयानक घटना हुई थी। इसमें कई लोगों और मवेशियों की जान चली गई थी। शिमला जिले के चिड़गांव में 15 अगस्त ,1997 को 1500 लोग बादल फटने की घटना से हताहत हुए थे। मंडी शहर के अस्पताल रोड पर साल 1984 में भारी बारिश से करोड़ों का नुक्सान हुआ था। धर्मपुर क्षेत्र में भी वर्ष 2004 में बादल फटने के बाद बारिश का पानी 10 दुकानों में घुस गया था, जिससे दुकानों को भारी नुकसान हुआ था। तबाही वाले बादलों की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ ऐसे मूसलाधार बारिश करने वाले बादलों को ‘क्यूमोलोनिंबस’ बादल के नाम से पहचानते हैं। ये बादल गोभी की शक्ल के लगते हैं और ऐसा लगता है जैसे गोभी का फूल आकाश में तैर रहा हो। इसी वर्ष शिमला व कुल्लू में बादल फटने की गई घटनाएं हो चुकी हैं।
बरोट में नोटिस हुई थी पहली घटना
वर्ष 1970 में पहली बार बादल फटने की घटना का नोटिस लिया गया, जहां एक मिनट में 38.10 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी। यह बारिश जिला मंडी व कांगड़ा की सीमा बरोट में हुई थी। इसके बाद से लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। बरोट में एक मिनट में 38.10 मिमी बारिश हुई थी।
विश्व की प्रमुख घटनायें
अवधि वर्षा स्थान दिनांक
1 मिनट 1.9 इंच (48.26 मि॰मी॰) लेह, जम्मू और कश्मीर, भारत 06 अगस्त 2010
1 मिनट 1.5 इंच (38.10 मि॰मी॰) बरोट, हिमाचल प्रदेश, भारत 26 नवम्बर 1970
5 मिनट 2.43 इंच (61.72 मि॰मी॰) पोर्ट बेल्स, पनामा 29 नवम्बर 1911
15 मिनट 7.8 इंच (198.12 मि॰मी॰) प्लम्ब पॉइंट, जमैका 12 मई 1916
20 मिनट 8.1 इंच (205.74 मि॰मी॰) कर्टी-दे-आर्गस, रोमानिया 7 जुलाई 1947
40 मिनट 9.25 इंच (234.95 मि॰मी॰) गिनी, वर्जीनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका 24 अगस्त 1906
10 मिनट उपलब्ध नहीं केदारनाथ, उत्तराखंड, भारत 16 जून 2013
15 मिनट उपलब्ध नहीं केदारनाथ, उत्तराखंड, भारत 17 जून 2013
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भारत में बादल फटने से हर साल भारी तबाही मचती है और जान-माल की क्षति होती है। आईए जानते हैं बादल फटने की दस बड़ी घटनाएं-
1. अगस्त 1998- कुमाऊं जिले के काली घाटी में बादल फटने से लगभग 250 लोग मारे गए। इनमें कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले 60 लोग भी शामिल थे। इस घटना में प्रसिद्ध उड़िया डांसर प्रोतिम बेदी भी थी, जो कैलाश मानसरोवर जा रही थी। लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई।
2. जुलाई 2005- मुंबई में हुई बादल फटने की घटना में 50 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। इस दौरान मुंबई में 950 मिमी बारिश दर्ज की गई और अगल दस-बारह घंटों के लिए पूरा शहर थम सा गया था।
3. जुलाई 2005- हिमाचल प्रदेश के घानवी में बादल फटने की घटने की घटना हुई जिसमें करीब 10 लोग मारे गए।
4. अगस्त 2010- जम्मू-कश्मीर के लेह में बादल फटने से 1000 से ज्यादा लोग मारे गए और 400 से अधिक घायल हुए। इस घटना में लद्दाख क्षेत्र के कई गांव उजड़ गए और 9000 से ज्यादा लोग प्रभावित हुए।
5. जून 2011- जम्मू के पास डोडा-बटोटे हाइवे के पास बादल फटने की घटना हुई। इसमें 4 लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हो गए।
6. जुलाई 2011- मनाली शहर से 18 किलोमीटर दूर उपरी मनाली क्षेत्र में बादल फटने की घटना हुई जिसमें 2 लोग मारे गए और 22 लोग लापता हो गए।
7. सितम्बर 2012- उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना हुई जिसमें 45 लोग मारे गए और 15 लोग घायल हो गए। बादल फटने के बाद एकाएक आई बाढ़ में 40 लोग गुम हो गए जिनमें से केवल 22 लोगों के शव मिले और बाकी का कोई अता-पता नहीं चला।
8. जून 2013- उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से 150 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों लोगों को अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। मरने वालों में से ज्यादातर तीर्थयात्री थे।
9. जुलाई 2014- उत्तराखंड के टिहरी जिले में बादल फटने की घटना हुई जिसमें 4 लोग मारे गए।
10. सितम्बर 2014- कश्मीर घाटी में बादल फटने से भारी तबाही मची जिसमें 200 लोग मारे गए। भारी वर्षा के कारण 1,84,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया।
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पहाड़ ही नहीं गर्म हवाएं भी बनती हैं कारण
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक हमारे देश में हर साल मॉनसून के समय पानी से भरे हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, जिनके लिए हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में आता है। इसीलिए बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं हिमालय क्षेत्र में ही होती है। बादल जरा सी भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते। यदि गर्म हवा का झोंका उन्हें छू जाए, तो उनके फट पड़ने की आशंका बन जाती है। इसलिए दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में भी कई बार बादल फटने की घटनाएं देखी गई है।
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हिमाचल में बादल फटने की घटनाएं बादलों के यहां के पहाड़ों से टकराने के कारण अधिक होती है। इससे अचानक एक स्थान में काफी पानी बरसता है। पहाड़ होने के कारण यह पानी तेजी से बहता है, इससे नुकसान अधिक होता
है। - मनमोहन सिंह, निदेशक, मौसम विभाग, शिमला।
बादल फटने की घटनाएं काफी सालों से होती आ रही हैं। इसके पीछे मुख्य कारण पहाड़ों से बादलों का रूकना या टकराना कहा जा सकता है। अभी इसमें ऐसा कोई कारण नहीं आया है कि इसके पीछे पर्यावरण को जोड़ा, हां कुछ स्थानों में गर्म हवाएं अधिक होना भी कारण बन जाता है। लेकिन नुकसान वर्तमान में इसलिए हो रहा है क्योंिक लोगों ने अब नदी नालों के किनारें घर बना लिए हैं, कई स्थानों में नाले ही बंद हो गए हैं। ऐसे में जब बादल फटने से एकाएक सीमित स्थान में बारिश होगी, तो पानी तेज गति से बहना शुरू करेगा, लेकिन उसकी निकासी के स्थानों में अब बस्तियां बन जाने से नुकसान अधिक होता है। - डॉ. सुनील धर, भूगर्भ वैज्ञानिक।