डीसी किन्नौर जैसी गलती फिर न हो : हाईकोर्ट
प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश जारी किए हैं कि वह अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण दे।
जागरण संवाददाता, शिमला : प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश जारी किए हैं कि वह उन अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण दे जिन्हें अर्द्धन्यायिक कार्य निपटाने के लिए तैनात किया जाता है ताकि वैसी गलती फिर न हो जैसी उपायुक्त किन्नौर से हुई है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस तरह के अप्रशिक्षित अधिकारियों के कारण कोर्ट के कार्य पर बेवजह दबाव बना रहता है। अर्द्धन्यायिक कार्य के अलावा उनके प्रशासनिक कार्य पर भी बोझ बना रहता है। अनुसूचित जनजाति की भूमि को अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के अलावा किसी अन्य को हस्तातरित करने से जुड़े विवाद का निपटारा करने के दौरान उपायुक्त किन्नौर ने दोनों पार्टियों को सुने बिना ही अपना आदेश पारित कर दिया था। प्रतिवादी को एक माह के भीतर विवादित जमीन को खाली करने के आदेश पारित कर दिए थे। उनके द्वारा पारित आदेश में कहा गया था कि विस्तृत फैसला फाइल पर लगा दिया गया है। न्यायालय ने पाया कि इस तरह का कोई भी विस्तृत फैसला डीसी द्वारा 27 मार्च 2017 तक पारित नही किया गया था। क्या था मामला
याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रतिवादी शिवलाल ने वर्ष 1998 में अपनी भूमि राज्य सरकार से स्वीकृति मिलने के बाद मैसर्स बंजारा कैंपस एंड रिट्रीट प्राइवेट लिमिटेड को लीज पर दी थी। 21 सितंबर 2013 को प्रतिवादी ने प्रार्थी को कानूनी नोटिस भेजकर कथित अवैध निर्माण रोकने को कहा। 22 जनवरी 2014 को प्रतिवादी ने उपायुक्त किन्नौर के समक्ष आवेदन दायर कर प्रार्थी कंपनी से भूमि खाली करवाने की गुहार लगाई। प्रार्थी की दलील थी कि उपायुक्त ने दोनों पक्षों को सुनवाई के पूरा अवसर दिए ही भूमि को खाली करने के आदेश पारित कर दिए। इस पहलू को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उपरोक्त आदेश पारित किए। प्राकृतिक न्याय के सिद्धातों का हो पालन
न्यायालय ने कहा कि उपायुक्त का यह दायित्व है कि वह किसी मामले पर फैसला पारित करने से पूर्व प्राकृतिक न्याय के सिद्धातों का पूरी तरह पालन करें। उनके द्वारा पारित किया गया फैसला न्यायिक, स्पष्ट, भेदभाव रहित, कारण सहित व इमानदारी से पारित किया जाने वाला होना चाहिए।