डंपिग साइट की मंजूरी मिलने में लग रहे चार साल
सड़क का निर्माण करना हो या सरकारी भवन या निजी भवन बनाने के लिए मलगा डंप करने के लिए डंपिग साइट बनाने के लिए एफसीए यानी फॉरेस्ट कंसरवेशन एक्ट की मंजूरी लेने में चार साल लग रहे हैं। ऐसे में कहीं पर भी मलबा डंप हो रहा है जो प्राकृतिक आपदा के साथ नुकसान का कारण बन रहा
राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल में सड़क का निर्माण करना हो या सरकारी भवन व निजी भवन बनाने के लिए डंपिग साइट बनानी हो, इसे लेकर वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) की मंजूरी लेने में चार साल लग रहे हैं। ऐसे में कहीं पर भी मलबा डंप किया जा रहा है। ऐसा करना प्राकृतिक आपदा के साथ नुकसान का कारण बन रहा है। यह बात मुख्य सचिव श्रीकांत बाल्दी ने शिमला में पर्यावरण पर आयोजित कार्यशाला के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को मलबा डंप करने के लिए साइट की एफसीए के तहत अनुमति देने की शक्ति राज्य सरकारों को प्रदान करनी चाहिए। यह शक्ति अभी केंद्र सरकार के पास है। इससे ऐसे स्थानों का चयन समय पर होगा और मलबे की सही स्थान पर डंपिग हो सकेगी। मलबे का सही तरीके से निपटान न होने के कारण पर्यावरण दूषित हो रहा है। कीटनाशकों, रसायनिक खाद आदि के इस्तेमाल से फूड चेन खराब हो रही है। इसका असर पीने के पानी पर पड़ रहा है। भूमि की उपजाऊ क्षमता भी प्रभावित हो रही है। यही कारण है कि प्राकृतिक खेती को प्रदेश में लागू किया गया है। प्रदेश में पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत की गई है। शिमला और धर्मशाला में लोकल बसों को शुरू करने के बाद प्रदेश में लंबी दूरी के लिए भी बिजली से चलने वाले ईको फ्रेंडली बसों को चलाया जाएगा। कानून तो बहुत बनते हैं लेकिन लागू 10 से 15 फीसद तक होते हैं। कानून को पूरी तरह से लागू करवाने की आवश्यकता है। पर्यावरण के बचाव के लिए विकास के साथ पर्यावरण का संतुलन जरूरी है।