परीक्षा बोर्ड से शिक्षा बोर्ड तक
राज्य का स्कूल शिक्षा बोर्ड, उम्र में पूर्ण राज्य हिमाचल प्रदेश से दो साल बड़ा है।1969 में स्कूल शिक्षा बोर्ड की स्थापना शिमला में हुई जबकि 1983 में इसे धर्मशाला स्थानांतरित किया गया।
By BabitaEdited By: Published: Fri, 01 Feb 2019 11:47 AM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 11:47 AM (IST)
शिमला, नवनीत शर्मा।
बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना
महान शायर मिर्जा गालिब ने आदमी के बजाय इन्सान को अहमियत दी थी। उनका मानना था कि आदमी तो रोज पैदा होता है, इन्सान होना कठिन है। आदमी को इन्सान बनाने का एक बड़ा कारगर औजार शिक्षा है। जाहिर है, शिक्षा की अनिवार्यता पर शोध की आवश्यकता नहीं है। इस कार्य के लिए शिक्षा विभाग के अलावा शिक्षा बोर्ड की भूमिका भी स्वत: स्पष्ट है।
राज्य का स्कूल शिक्षा बोर्ड, उम्र में पूर्ण राज्य हिमाचल प्रदेश से दो साल बड़ा है।1969 में स्कूल शिक्षा बोर्ड की स्थापना शिमला में हुई जबकि 1983 में इसे धर्मशाला स्थानांतरित किया गया। करीब 26 अध्यक्ष देख चुके बोर्ड में आधे से अधिक भारतीय प्रशासनिक सेवा के थे और बाकी वे, जिनका राजनीति के साथ नाता था। उसके बाद वे जो वास्तव में शिक्षा जगत के साथ संबद्ध थे। शिक्षा बोर्ड की एक चुनौती अपने नाम को सार्थक करना भी रही है कि ये शिक्षा बोर्ड ही रहे, परीक्षा बोर्ड बन कर न रह जाए।
राजनेताओं के लिए शिक्षा बोर्ड भी मुख्यत: तीन वर्ष के लिए राजनीतिक पुनर्वास का स्थान है, इसलिए सरकार अपने विवेक से सभी समीकरणों को ठोंक पीट कर देखने के बाद नियुक्तियां करती है। जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार गठन के एक वर्ष के बाद शिक्षा बोर्ड को डॉ. सुरेश कुमार सोनी के रूप में अध्यक्ष मिला है। हिमाचल प्रदेश के कई बोर्ड और निगम अभी रिक्त हैं लेकिन शिक्षा बोर्ड को अध्यक्ष देकर सरकार ने जरूरी काम किया है। शिक्षा बोर्ड की तुलना अन्य बोर्ड या निगम से इसलिए नहीं की जानी चाहिए क्योंकि
यहां प्रदेश और देश के भविष्य का सवाल है।
राहत की बात यह है कि नए अध्यक्ष पिछले कुछ अध्यक्षों की तरह केवल दफ्तर तक सीमित नहीं हैं, मैदान पर भी उतर रहे हैं। किसी व्यवस्था को बदलने के लिए एक मुसाफिर भी काफिला हो जाता है, बशर्ते उसमें दृष्टि हो। इतिहास गवाह है, किसी बड़े बदलाव का कारण कोई गिरोह या समूह नहीं, एक आदमी ही बना है। डॉ. सोनी का काफिला शिक्षा उपनिदेशकों से भी आगे जाकर अगर हर जिले के स्कूलों के मुखिया तक पहुंच रहा है तो यह परिवर्तन सकारात्मक है।
बेशक उन्हें कार्यभार संभाले अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ है लेकिन संकेत बता रहे हैं कि एक सक्रिय शिक्षाविद जब दायित्व लेता है तो उसे निभाने के लिए सक्रिय भी रहता है। प्रदेश के 45 परीक्षा केंद्र इस बार ऐसे होंगे जहां महिला ही सर्वेसर्वा या निर्णायक भूमिका में होंगी। बोर्ड का विचार है कि बाद में एक तुलनात्मक अध्ययन भी किया जाए। इस बात का कि पुरुषों द्वारा प्रशासित परीक्षा केंद्रों और महिलाओं द्वारा प्रशासित केंद्रों में अंतर क्या और किस प्रकार का रहा।
नकल के खिलाफ इस बार एसडीएम के उड़नदस्ते भी एडीएम यानी अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के अधीन रहेंगे। बोर्ड के उड़नदस्तों में अनुभाग अधिकारी या उससे ऊपर के स्तर का सहयोगी ही जाएगा। इसे बीनिवोलेंट या विनम्र उड़नदस्ते का नाम भी दिया गया है।
परीक्षा केंद्रों में सीसीटीवी का बंदोबस्त होगा। हालांकि बोर्ड अध्यक्ष नकल रोकने के लिए शिक्षक पर सीसीटीवी से अधिक भरोसा करते हैं लेकिन व्यावहारिक सत्य भी अपनी जगह है। उम्मीद जगी है कि बोर्ड अपना होना नए तरीके से साबित करेगा।
...परीक्षाओं से निवृत्त होकर शिक्षा बोर्ड को शिक्षा बोर्ड के दायित्व पर भी आना होगा। बेशक एनसीईआरटी के पाठयक्रम को अपनाते हैं लेकिन शिक्षा बोर्ड की किताबों में गलतियों की भरमार है, मुद्रण दोषों का अंबार है और उसे अद्यतन किए जाने की दरकार है। इस बात का किसी के पास क्या जवाब है कि अगर देश में योजना आयोग का अस्तित्व ही नहीं रहा तो वह अब तक अर्थशास्त्र के पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों है? किताबों के कई पन्ने खाली क्यों हैं? कई किताबें गलतियों से स्याह क्यों हैं? विचारधाराओं की बात गौण
है, मूलभूत तथ्यों को ठीक से परोसा जाना ही प्राथमिकता होनी चाहिए। ये विसंगतियां दूर न हुईं तो हस्तीमल हस्ती हमें याद दिलाते रहेंगे :
कुछ और सबक हमको जमाने ने सिखाए
कुछ और सबक हमने किताबों में पढ़े थे
जाहिर है, ये सभी काम शिक्षा बोर्ड को ही करने हैं। वह कर भी सकता है। किसी जमाने में 34 कर्मचारियों के साथ अस्तित्व में आने वाले शिक्षा बोर्ड के पास 643 कर्मचारी हैं। पाठयक्रम पर एक बार फिर संजीदगी के साथ सोचा जाए और प्रयास हो कि किताबों में वह सब हो जो जीवन के काम आए। जीवन में दिखाई भी दे। बेशक किताबें भी तब ही संपूर्ण शिक्षक बनती हैं जब उन्हें पढ़ने वाले को शिक्षकों, अभिभावकों के आचरण से भी शिक्षा मिले।
यह बहाना तब ही चलन में आता है जब किताबें अधूरी या गलत पढ़ी जाती हैं :
खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको
बहरहाल, हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड सुरक्षित हाथों में प्रतीत हो रहा है, बाकी भविष्य अपना पता आप देगा
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