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शिमला में अव्यवस्थाओं की मंडी

यह हिमाचल की राजधानी शिमला की सब्जियों की कम और अव्यस्थाओं की मंडी ज्यादा है। खेतों में खून पसीना बहाकर उबड़-खाबड़ मिट्टी में मेहनत के बूते सब्जी तैयार की अन्नदाता जब यहां पहुंचता है तो व्यवस्थागत कमियों का शिकार हो जाता है। ढुलाई और गाड़ी के भाड़े से ही जेब पर बोझ पड़ना आरंभ हो जाता है। सुविधा तो हैं नहीं असुविधाएं जरूर हिस्से आती हैं। राज्य सरकारों से लेकर नगर निगम और जिला प्रशासन तक सबने सुविधाएं देने के कोरे वादे किए। आश्वासनों के झुनझुने थमाए पर तस्वीर बदलने की बजाय बद से बदतर होती चली गई। आज आलम यह है कि किसान इस मंडी से या तो छोटी या चंडीगढ़ की बड़ी मंडी की ओर रूख करने लगे हैं। ताराचंद शर्मा शिमला

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 03:55 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 06:41 AM (IST)
शिमला में अव्यवस्थाओं की मंडी
शिमला में अव्यवस्थाओं की मंडी

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राजधानी शिमला की सब्जियों की कम और अव्यस्थाओं की मंडी ज्यादा है। खेतों में खून पसीना बहाकर उबड़-खाबड़ मिट्टी में मेहनत के बूते सब्जी तैयार कर अन्नदाता जब यहां पहुंचता है तो व्यवस्थागत कमियों का शिकार हो जाता है। ढुलाई और गाड़ी के भाड़े से ही जेब पर बोझ पड़ना आरंभ हो जाता है। सुविधा तो है नहीं असुविधाएं जरूर हिस्से आती हैं। राज्य सरकारों से लेकर नगर निगम और जिला प्रशासन तक सभी ने सुविधाएं देने के कोरे वादे किए हैं। आश्वासनों के झुनझुने थमाए पर तस्वीर बदलने की बजाय बद से बदतर होती चली गई। आज आलम यह है कि किसान सब्जी मंडी से या तो छोटी या चंडीगढ़ की बड़ी मंडी की ओर रूख करने लगे हैं। ------------------

ताराचंद शर्मा, शिमला

खेतों में कई महीने पसीना बहाकर पैदावार करने वाले किसानों के खिले चेहरे शिमला सब्जी मंडी में आकर मायूस हो जाते हैं। मेहनत के मुताबिक कमाई कुछ भी नहीं है। यदि कभी सुबह सब्जी मंडी में उत्पाद के अच्छे भाव मिल भी जाएं तो ढुलाई व गाड़ी का भाड़ा ही किसानों की कमर सीधी नहीं होने देता है। किसानों, मजदूरों, व्यापारियों व चालकों के माथे पर शिकन अव्यवस्था के कारण छा जाती है। चालकों को गाड़ी से सब्जी लोड व अनलोड करने के ही 50 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं, जो कार्ट रोड पर सब्जी उतार रहा है, उसका चालान कट रहा है। कुली जो बोझ पीठ पर उठा रहे हैं, खड़ी सीढि़यां चढ़ते-चढ़ते कब कौन पीछे पीठ पर रखे नग से मूली, टमाटर या धनिया निकाल ले जा रहा है इसका कोई पता नहीं चलता है। सुबह पांच बजे से सब्जी मंडी पहुंचना शुरू होने वाले किसानों को नौ बजे तक भी पता नहीं होता है कि आज क्या भाव लगेगा। वे कई घंटे तक आढ़ती पर टकटकी लगाए रहते हैं। जब बोली लगने के बाद पैसे मिलते हैं तो हिसाब लगाते-लगाते चेहरे की लाली छिन जाती है। सब्जी मंडी में सुविधाओं का भी अभाव है। प्रदेश की सबसे पुरानी सब्जी मंडी शिमला का हाल खराब है। यही कारण है कि किसानों ने चंडीगढ़ व छोटी मंडियों का रूख करना शुरू कर दिया है। -----------------------

50 रुपये एंट्री पर रसीद नहीं

वाहन चालकों का कहना है कि सब्जी मंडी में एंट्री के नाम पर लूट हो रही है। कार्ट रोड से सब्जी मंडी आने वाले मार्ग से ऊपर तक आने की एंट्री 50 रुपये ली जा रही है। एंट्री पर बैठे ठेकेदार इसकी पर्ची भी नहीं दे रहे हैं। यदि वाहन पार्क करना हो तो 100 रुपये लिए जा रहे हैं। मजबूरन कभी कार्ट रोड पर ही सामान लोड व अनलोड करना पड़े तो चालान कट जाता है। इतना ही नहीं कार्ट रोड पर सुबह सब्जियों की लोडिग अनलोडिग के कारण जाम भी लग जाता है। सब्जी मंडी ग्राउंड तक वाहन आने-जाने के मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। प्रशासन का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में किसान भला क्या कमाएंगे?

------------------- दुकानदारों ने कहा मंडी में ठहरने की कोई सुविधा नहीं है। लेबर बहुत पड़ जाती है। किसानों को इससे नुकसान हो रहा है। लेबर का खर्च ज्यादा है। लोडिग व अनलोडिग करवाने में किसानों को दिक्कत आती है। सब्जी मंडी सड़क के साथ होनी चाहिए। हालांकि किसानों को दाम अच्छे मिल रहे हैं, लेकिन सड़क से दूर होने के कारण किसानों का खर्च बढ़ जाता है। -------------------

चोरी हो जाती है सब्जी

आधे से अधिक किसानों की सब्जी तो कार्ट रोड पर चोरी हो जाती है। कुली की पीठ पर किल्टा रखा हो या पल्ली, लोग पीछे से सब्जी निकाल लेते हैं। मंडी पहुंचते-पहुंचते सब्जी कई बार बहुत कम हो जाती है। होल सेल में ली गई सब्जी चुनकर नहीं ली जाती है। जब उपभोक्ता दुकान में आता है तो चुन-चुनकर सब्जी उठाता है और खराब चीज तो वह नहीं खरीदेगा। ऐसे में बाद में जो सब्जी रह जाए, उसे फेंकना पड़ता है। -------------------

सब्जी मंडी सबसे पुरानी, सुविधाएं हैं नहीं

यहां 26 आढ़ती यानी होल सेलर पंजीकृत हैं। प्रदेश की सबसे पुरानी सब्जी मंडी है लेकिन सुविधाएं न सरकार की ओर से न ही नगर निगम ने दी हैं। परिवहन सुविधा नहीं है। लोडिग व अनलोडिग में ही किसानों के 20 से 100 रुपये चले जाते हैं और लेबर का खर्च अलग है। किसान को तो कुछ भी नहीं बचता है। सरकार की अपेक्षा के कारण सब्जी मंडी डूबने के कगार पर पहुंच चुकी है। शहर में सब्जी महंगी होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि किसानों का विश्वास मंडी से उठता जा रहा है।

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आधारशीला रखी लेकिन एक इंट तक नहीं लगी

पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दाड़नी बागीचा में बनने वाली सब्जी मंडी का दो साल पहले शिलान्यास किया था लेकिन अभी तक एक ईट तक नहीं रखी गई है। मुख्यमंत्री ने जो शिलान्यास पट्टिका लगाई थी, उसे भी उखाड़ दिया गया है। शिलान्यास पट्टिका के ठीक सामने मलबे के ढेर लगे हुए हैं। ये स्थान सड़क के बिल्कुल साथ हैं। रात के अंधेरे में यहां पर मलबा गिरा दिया जाता है। शिमला ग्रामीण के लोग बेसब्री से इस सब्जी मंडी के निर्माण को पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। करीब साढ़े पांच करोड़ की लागत से इस सब्जी मंडी का निर्माण किया जाना है।


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