Move to Jagran APP

अफसरशाही में पिसे शाहजहां, नहीं बना पाए ताजमहल

या गया कि कैसे समय के बदलाव के साथ-साथ मनुष्य में भी परिर्वतन की इच्छा जागृत हुई और इसी परिर्वतन की देन है श्रम का विभाजन काल का विभाजन फाइलें अफसरशाही लाल फीताशाही सहित अन्य कुरीतियों ने जन्म लिया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 08:41 PM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 06:22 AM (IST)
अफसरशाही में पिसे शाहजहां, नहीं बना पाए ताजमहल
अफसरशाही में पिसे शाहजहां, नहीं बना पाए ताजमहल

जागरण संवाददाता, शिमला : आज की व्यवस्था में शाहजहां यदि ताजमहल बनाने की सोचता तो अफसरशाही के जंजाल में फाइल इस तरह फंसती की बादशाह की अंतिम सांस निकल जाती, लेकिन ताजमहल मुमताज की याद में न बनता। भाषा एवं संस्कृति विभाग व राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली की ओर से प्रख्यात रंगकर्मी स्वर्गीय मनोहर सिंह की स्मृति में नाट्य समारोह के पहले दिन ताजमहल का टेंडर नाटक का मंचन किया।

loksabha election banner

गेयटी थियेटर में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज सहित सरकार के आला अधिकारियों की मौजूदगी में सरकारी सिस्टम की ऐसी पोल मंच से खोली की सभी हैरत में पड़ गए। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के निदेशक प्रो. सुरेश शर्मा सीपीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर की भूमिका में थे। उन्होंने मंच से बताया कि कैसे सरकारी तंत्र बादशाहों पर भी भारी पड़ जाता। नाटक में दर्शाया गया कि कैसे समय के बदलाव के साथ-साथ मनुष्य में भी परिवर्तन की इच्छा जागृत हुई और इसी परिवर्तन की देन है श्रम का विभाजन, काल का विभाजन, फाइलें, अफसरशाही, लालफीताशाही सहित अन्य कुरीतियां। नाटक की शुरुआत तब होती है जब बादशाह शाहजहां सीपीडब्लयूडी के चीफ इंजीनियर गुप्ता जी को बुलाकर उन्हें अपनी जन्नतनशीन बीवी मुमताज के लिए एक यादगार इमारत बनवाने के अपने ख्वाब के बारे में बताते हैं। काफी सोच-विचार के बाद वो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि मुमताज की याद में वह ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाएंगे। एक बेहद चालाक और भ्रष्ट अधिकारी गुप्ता जी ने शाहजहां को अपने जाल और लालफीताशाही की ऐसी भूल भुल्लैया में फंसा लिया। शाहजहां की ताजमहल की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए व टेंडर निकालने में गुप्ता जी ने 25 साल लगा दिए। अंत में शाहजहां मुमताज के पास पहुंच गए, लेकिन उसकी याद में बने मकबरे को देखने की चाहत पूरी नहीं हो सकी। गुप्ता जी अपनी और अपने बाबू की जेब भरने के चक्कर में जुटे रहते हैं। नाटक में शाहजहां की भूमिका में शहनवाज, बाबू की भूमिका में आशुतोष बनर्जी, महिला नेता की भूमिका में श्रुति मिश्रा, भैया जी दीप कुमार, कैन्हया की भूमिका में सिकंदर कुमार नजर आए। गुप्ता जी ने जमना किनारे जमीन खरीदने में भी की सेटिंग

गुप्ता जी ने शाहजहां का सपना पूरा करने के लिए ठेकेदार भैया जी से मिलकर धंसने वाली जमीन खरीदी। इसमें तर्क दिया कि हम तो मरेंगे नहीं, जो मरेंगे हमें उनसे क्या। नेताओं से लेकर सरकारी महकमों की क्या भूमिका रहती है, रंगमंच के माध्यम से पूरी तस्वीर दर्शकों के समक्ष परोसी गई। कैसे कौन का महकमा प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनी को निचोड़ता है, इसे दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.