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नशे से मौतों पर सरकार ही बेखबर

प्रदेश सरकार ने नशे के खिलाफ जंग छेड़ने का आगाज कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 07:09 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 07:09 PM (IST)
नशे से मौतों पर सरकार ही बेखबर

राज्य ब्यूरो, शिमला : प्रदेश सरकार ने नशे के खिलाफ जंग छेड़ने का आगाज कर दिया है। लेकिन जिस बड़ी सामाजिक समस्या से प्रशासन को लड़ाई लड़नी है, उससे कितने लोग प्रभावित हैं और कितनी मौतें हुई हैं, इसका पुख्ता पता नहीं है। सरकार को यह पता नहीं है कि हिमाचल में कितने लोग ड्रग्स का सेवन करते हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सरकार सर्वे करवाने से क्यों परहेज कर रही है। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है। इसमें प्रदेश में नशे की गिरफ्त में आए युवाओं की तादाद काफी ज्यादा बताई जा रही है। कई वर्ष पहले हुए एक गैर सरकारी सर्वे के मुताबिक यहां के करीब 28 फीसद युवा नशे की चपेट में हैं। हैरत की बात है कि इसमें स्कूली बच्चे तक शामिल हैं। मौजूदा समय में तो समस्या ज्यादा गंभीर हो चुकी है। ऐसे में नए सर्वे करवाने की जरूरत महसूस की जा रही है। सरकार के पास केवल तीन साल का ही आंकड़ा उपलब्ध है। इस दौरान तीन लोगों की नशे से मौत होने की बात कही गई है, जबकि 10 मौतें संदेहास्पद हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पिछले दिनों ही नशे के खिलाफ बद्दी से मुहिम छेड़ी थी। अब इसे पूरे राज्य में चलाया जा रहा है। इसके तहत लोगों को जागरूक किया जा रहा है।

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विधानसभा में गूंजा था मामला

प्रदेश में बढ़ रहा नशाखोरी का मामला विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी प्रमुखता से उठा था। सदन ने इस पर ¨चता जाहिर की थी। उस वक्त विपक्ष ने आंकड़ों पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस विधायक अनिरूद्ध ¨सह ने सवाल पूछा तो इसके जवाब में जानकारी दी गई कि प्रदेश में नशे का सेवन करने वालों का कोई निश्चत आंकड़ा नहीं है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा था कि ऐसे आंकड़े का आकलन करना कठिन है। मौतों का आंकड़ा तो और भी मुश्किल है। आधिकारिक तौर पर तीन साल में नशे से केवल तीन मौतें हुई हैं। हालांकि संदेहास्पद मौतों की संख्या 10 हैं। उन्होंने कहा कि यह समस्या गंभीर है। अगर गंभीर न होती तो फिर नशे के खिलाफ विधेयक लाने, चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं रहती। संदिग्ध मौत पर लोग पोस्टमार्टम नहीं करवाते हैं। इससे सही आकलन करना संभव नहीं रहता। हालांकि यह सही है कि नशे का प्रचलन बढ़ रहा है। अनिरूद्ध ¨सह ने दावा जताया कि तीन साल में एक से डेढ़ हजार युवाओं की नशे से मौतें हुई हैं। करीब दो सौ युवा तो ऐसे हैं, जिन्हें वह खुद जानते हैं। कांग्रेस विधायक सुख¨वदर ¨सह सुक्खू ने सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री 28 फीसद युवा वर्ग के नशे की चपेट में होने के बयान देते रहते हैं। लेकिन प्रश्न के जवाब में आंकड़ा नहीं दिया है। पांवटा के विधायक सुखराम चौधरी ने 100 बिस्तर वाले अस्पतालों में 10 बिस्तर नशे के शिकार युवाओं के लिए रखने की मांग उठाई थी। इस पर मुख्यमंत्री ने बताया कि नशे की मांग और सप्लाई कम करने के लिए पड़ोसी राज्यों के साथ समन्वय स्थापित किया है। थाना स्तर पर नशा निवारण कमेटियों का गठन किया गया है। नशा मुक्ति केंद्रों को मजबूत किया जा रहा है।

नशे के आदी का इलाज ही समाधान : डॉ. दिनेश

आइजीएमसी के साइकेट्री विभाग के मनारोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार कहते हैं कि नशे से युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। इससे बचाव के लिए मल्टी डिसीप्लेनरी एप्रोच की जरूरत है। अगर कोई नशे का आदी हो जाए तो फिर एकमात्र इलाज ही समाधान है। 15 से 25 साल के युवा चिट्टा और हेरोइन जैसे नशे के ज्यादातर शिकार हो रहे हैं। कई बार ओवरडोज से मौत तक हो रही है। चरस और एल्कोहल के आदी बड़ी उम्र के हैं। हालांकि युवा भी चरस पीते हैं। नशे से शरीर पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं। जब नशा नहीं मिलता है तो शरीर में अकड़न और दर्द होने लगती है। नाक और आंख से पानी बहने लगता है। मिरगी का दौरा पड़ता है। मेडिकल कॉलेजों में मनोरोग चिकित्सक तैनात हैं। जिला अस्पतालों में प्रशिक्षित काउंसलर और डॉक्टर हैं। इन्हें बेंगलुरु से प्रशिक्षित किया गया है। नशे का सेवन करने वाले युवाओं को अस्पताल पहुंचाएं तो उनका इलाज संभव है।


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