ट्रिब्यूनल बंद करने से नाराज कांग्रेस का वाकआउट
उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए। माकपा विधायक राकेश सिघा चाहते थे कि एक अध्यादेश के माध्यम से ट्रिब्यूनल को निरस्त करने की जगह विधानसभा में चर्चा करके निर्णय लेना चाहिए था। विधानसभा में ट्रिब्यूनल मामले में विधायक अपना पक्ष रख सकते थे। सिघा का कहना था कि ट्रिब्यूनल में कर्मचारियों से जुड़े मामलों का सरलता से निपटारा हो जाता था। सरकार ने ट्रिब्यूनल बंद करने का निर्णय जल्दबाजी में लिया है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का कहना था कि ट्रिब्यूनल भंग करने का निर्णय तानाशाहपूर्ण है। एक तरफ सरकार ने ट्रिब्यूनल में दो सदस्यों की नियुक्ति करने की प्रक्रिया शुरू की हुई थी और दूसरी ओर इसे भंग करके कर्मचारी विरोधी निर्णय लिया गया है। इससे पहले भी भाजपा ने सत्ता में रहते हुए ट्रिब्यूनल भंग किया था।
राज्य ब्यूरो, शिमला : राज्य प्रशासनिक अधिकरण (ट्रिब्यूनल) बंद करने को लेकर विपक्षी कांग्रेस ने तेवर दिखाए। विपक्ष ट्रिब्यूनल बंद करने के खिलाफ था और चाहता था कि कर्मचारी हित में इसे बहाल किया जाए। लेकिन ट्रिब्यूनल में लंबित 21 हजार मामलों का हवाला देकर सत्ता पक्ष ने इसे बंद करना जायज ठहराया। विपक्ष की ओर से इस मामले का विरोध किया गया। नाराज विपक्ष ने पहले सदन में हंगामा और अंतत: वाकआउट किया।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ने ट्रिब्यूनल को आंखें मूंद कर बंद करने का निर्णय नहीं लिया। सबसे पहले कर्मचारियों के कई वर्गो से इस संबंध में चर्चा की। उसके बाद मंत्रिमंडल में सभी पहलुओं पर विचार किया गया। इसके बाद ट्रिब्यूनल को बंद करने का फैसला कर्मचारी हित में लिया गया। देश के छह राज्यों में ट्रिब्यूनल की व्यवस्था है। इनमें से ओडिशा ने एक माह पहले ही ट्रिब्यूनल को बंद कर दिया है। वीरवार को लाए गए विधेयक का उद्देश्य ट्रिब्यूनल के लंबित मामलों को प्रदेश उच्च न्यायालय में भेजने का निर्णय लेना था। यदि ट्रिब्यूनल से कर्मचारी वर्ग खुश था तो कांग्रेस हारकर विपक्ष में क्यों बैठी। ट्रिब्यूनल मामले में कांग्रेस महज राजनीति कर रही है। गलत तरीके से बंद किया ट्रिब्यूनल : हर्षवर्धन
ट्रिब्यूनल मामले पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस विधायक हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि सरकार ने गलत तरीके से ट्रिब्यूनल बंद किया है। जो मामले राज्य उच्च न्यायालय भेजे जा रहे हैं, ऐसे मामलों की संख्या 21 हजार से अधिक है। इन मामलों का निपटारा करने में कई साल लग जाएंगे। करीब 40 हजार मामले लंबित है। ऐसे में कर्मचारियों को उच्च न्यायालय में न्याय प्राप्त करने में अधिक समय लगेगा और पैसा भी अधिक खर्च होगा। कर्मचारी विरोधी निर्णय : सुक्खू
कांग्रेस विधायक सुखविदर सुक्खू ने कहा कि ट्रिब्यूनल बंद करना कर्मचारी विरोधी निर्णय है। उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए। सरलता से होता था मामलों का निपटारा : सिघा
माकपा विधायक राकेश सिघा ने कहा कि एक अध्यादेश के माध्यम से ट्रिब्यूनल को निरस्त करने की जगह विधानसभा में चर्चा करके निर्णय लेना चाहिए था। विधानसभा में ट्रिब्यूनल मामले में विधायक पक्ष रख सकते थे। ट्रिब्यूनल में कर्मचारियों से जुड़े मामलों का सरलता से निपटारा हो जाता था। सरकार ने ट्रिब्यूनल बंद करने का निर्णय जल्दबाजी में लिया है। ट्रिब्यूनल भंग करने का निर्णय तानाशाहपूर्ण : मुकेश अग्निहोत्री
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि ट्रिब्यूनल भंग करने का निर्णय तानाशाहपूर्ण है। सरकार ने ट्रिब्यूनल में दो सदस्यों की नियुक्ति करने की प्रक्रिया शुरू की थी। वहीं, ट्रिब्यूनल को भंग करके कर्मचारी विरोधी निर्णय लिया गया है। इससे पहले भी भाजपा ने सत्ता में रहते हुए ट्रिब्यूनल को भंग किया था।