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कांग्रेस की जीत के लिए वीरभद्र का होना जरूरी नहीं : सुक्खू

पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि पहले वीरभद्र सिंह ने वरिष्ठ नेता सत महाजन, विद्या स्टोक्स, विप्लव ठाकुर और फिर कौल सिंह ठाकुर का विरोध किया।

By Edited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 08:27 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 08:50 AM (IST)
कांग्रेस की जीत के लिए वीरभद्र का होना जरूरी नहीं : सुक्खू
कांग्रेस की जीत के लिए वीरभद्र का होना जरूरी नहीं : सुक्खू

शिमला, राज्य ब्यूरो। वीरभद्र सिंह और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू में जुबानी जंग फिर तेज हो गई है। सुक्खू ने पलटवार करते हुए कहा है कि कांग्रेस मजबूत है और पार्टी को जीत के लिए वीरभद्र सिंह का होना जरूरी नहीं है। जब भी चुनाव आते हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री पार्टी नेतृत्व के साथ ब्लैकमेलिंग शुरू कर देते हैं। कांग्रेस हाईकमान पर पूर्व सीएम की टिप्पणी अशोभनीय है। पार्टी में अच्छा काम करने वाले हर नेता का विरोध करना उनका स्वभाव बन गया है।

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रविवार को जारी बयान में सुक्खू ने कहा कि पहले वीरभद्र सिंह ने वरिष्ठ नेता सत महाजन, विद्या स्टोक्स, विप्लव ठाकुर और फिर कौल सिंह ठाकुर का विरोध किया। पार्टी के आम पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को कबाड़ कहना अशोभनीय है। वीरभद्र यह बताएं कि क्या गंगू राम मुसाफिर, चंद्र कुमार, हर्ष महाजन, अजय महाजन व रवि ठाकुर भी कबाड़ हैं, जिन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जगह दी गई है। लोकसभा चुनाव के लिए टिकट आवंटन पर हाईकमान के लिए अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया है। इसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए। नए और युवा चेहरों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जगह दी।

कांग्रेस के कुनबे को बढ़ाया, न कि व्यक्ति विशेष के। इसलिए वीरभद्र उनके भी धुर विरोधी बन गए। वह खुद को ही हिमाचल में कांग्रेस मानते हैं, जबकि समय बदल चुका है। पार्टी प्रदेश में बूथस्तर तक मजबूत है। वीरभद्र सिंह कांग्रेस नहीं, कांग्रेस पार्टी का हिस्सा हैं। प्रदेश में पहले ड्राइंग रूम से ही प्रदेश, जिला व ब्लॉक कांग्रेस कमेटियां बनती थी। कहीं-कहीं ब्लॉक कमेटियां होती थी। 60 टिकट वीरभद्र ने दिए, तो हारा कौन सुक्खू ने कहा कि उम्र के हिसाब से वीरभद्र ¨सह का सम्मान है, लेकिन वह कुछ भी कहते रहें और कोई जवाब नहीं देगा, ऐसा अब नहीं होगा। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार वीरभद्र ¨सह की हुई थी।

2014 में लोकसभा के चारों टिकट उन्होंने मर्जी से दिए थे। इसी तरह से विधानसभा चुनाव में भी 60 टिकटें अपनी पसंद के नेताओं को दिए। उन्हें (सुक्खू) तो केवल पांच टिकट मिले थे। संगठन के मजबूत होने से वीरभद्र को समस्या प्रदेश में संगठन की मजबूती वीरभद्र की समस्या रही है। वह कभी नहीं चाहते नहीं थे कि यहां कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी हो। इसलिए हमेशा उन्होंने पार्टी को अपने से ऊपर उठने ही नहीं दिया। कांग्रेस को खत्म कर व्यक्ति विशेष का कद बड़ा बना दिया।

वीरभद्र ने अपना कुनबा आगे बढ़ाया सुक्खू ने आरोप लगाया कि वीरभद्र ने पूर्व सरकार में ऐसे लोगों को निगम-बोर्ड अध्यक्ष बनाया था, जिन्होंने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा था। ऐसे लोगों से पार्टी को किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं हुआ था। विधानसभा चुनाव में वीरभद्र के चहेते नेताओं के बूथ पर आठ से 10 वोट पड़े। सीएम बनने पर उनका काम ही अपने कुनबे व पार्टी विरोधी नेताओं को आगे बढ़ाने का रहा है। वीरभद्र की नुमाइंदगी में हर चुनाव हारे पूर्व कांग्रेस सरकार में वीरभद्र के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस उनकी नुमाइंदगी में हर चुनाव हारी। जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुए तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बने सिर्फ एक साल हुआ था। तब वीरभद्र लोकसभा की चारों सीटें क्यों नहीं जीता पाए। उनकी पत्नी मंडी सीट से चुनाव कैसे हार गई। सरकार वीरभद्र की थी, फिर 2017 में क्यों चुनाव हारे। छह बार सीएम बनने के बावजूद वह कभी कांग्रेस सरकार रिपीट नहीं कर पाए।


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