विधायकों को नहीं पूछता योजना, लोक निर्माण विभाग
नाबार्ड के जरिये प्रदेश में ग्रामीण स्तर पर सड़क निर्माण होता है। विधायक प्राथमिकता के तहत होने वाले सड़क निर्माण में सरकार के दो महत्वपूर्ण विभागों ने विधायकों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया।
राज्य ब्यूरो, शिमला : राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के जरिये प्रदेश में ग्रामीण स्तर पर सड़क निर्माण होता है। विधायक प्राथमिकता के तहत होने वाले सड़क निर्माण में सरकार के दो महत्वपूर्ण विभागों ने उनसे कोई विचार-विमर्श नहीं किया। इसमें लोक निर्माण विभाग की मनमानी सामने आई है, वहीं इसी तरह का रवैया योजना विभाग का भी रहा है। सरकार के दोनों विभागों ने 65 सड़क परियोजनाओं की औपचारिकताएं अपने स्तर पर पूरी कर दी। हालांकि इस मामले में विधायकों को भरोसे में लेना जरूरी था। इस तरह के मामले 2013 से 2018 के बीच सामने आए हैं। इसका खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) रिपोर्ट में हुआ है।
रिपोर्ट में सरकार के दोनों विभागों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। विधायकों ने जिन क्षेत्रों को जोड़ने के लिए सड़कों के प्रस्ताव दिए थे, उन्हें प्राथमिकता देने के बजाय दोनों विभागों ने गांवों के नाम अपने स्तर पर दिए। वहीं जिन गांवों के नाम विधायकों ने सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए दिए थे, उनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया। रिपोर्ट में नाबार्ड के तहत बनने वाली सड़कों में हर स्तर पर लापरवाहीपूर्ण रवैया रहा। इस कारण करोड़ों की धनराशि का दुरुपयोग हुआ। लोक निर्माण ने बर्बाद किए 7.7 करोड़
नाबार्ड के दिशा-निर्देश के विपरीत लोक निर्माण विभाग ने पांच सड़कों की टारिंग मनमाने ढंग से की। नतीजा यह हुआ कि संबंधित तीन मंडलों के तहत आने वाले क्षेत्र के लोगों को सड़क सुविधा से वंचित रहना पड़ा। रिपोर्ट में कहा है कि केवल राज्य के तीन मंडलों में नाबार्ड निर्मित सड़कों की जांच की गई। इसमें सामने आया कि सड़कों को टारिंग करने में कोताही बरती गई। सड़कों से जुड़ी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट विश्वसनीय डाटा पर आधारित नहीं थी। ठेकेदारों को 10.94 करोड़ लुटाए
लोक निर्माण विभाग ने ठेकेदारों को 10.94 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया, जबकि 119 स्थानों पर सड़क निर्माण के मामलों में घटिया सामग्री इस्तेमाल हुई थी। इसी तरह के कई और सवाल खड़े किए गए थे, जिन्हें नजरअंदाज किया गया।