यह है मौत को मात देने वाले असली हीराे, 98 बार कर चुके हैं रक्तदान
नरेश शर्मा अब तक 98 बार कर चुके हैं रक्तदान, 17 साल में पहली बार किया था रक्तदान।
शिमला, रमेश सिंगटा। मौत को मात देने वाले यह असली हीरो हैं। इसके खून की बूंद-बूंद दूसरे के जीवन को समर्पित है। इनका रक्त व्यर्थ के झगड़ों और नालियों में नहीं बहता है, बल्कि जरूरतमंदों के शरीर की रगों में जीवन बनकर दौड़ता है। यह जिला शिमला के ठियोग क्षेत्र के मंझोली गांव के 38 वर्षीय नरेश शर्मा हैं।
वह अब तक 98 बार रक्तदान कर चुके हैं।
पहली बार उन्होंने 17 साल की आयु में यह नेक कार्य शुरू किया, जो निरंतर जारी है। पेशे से छोटे कारोबारी नरेश की सोच बहुत बड़ी है। उनका ब्लक ग्रुप ओ नेगेटिव है। हिमाचल से लेकर हरियाणा, चंड़ीगढ़ और पश्चिमी बंगाल तक वह खूनदान कर कई लोगों को नई जिंदगी दे चुके हैं। वह रक्तदाताओं के कई समूह से जुड़े हैं। कहीं भी किसी मरीज को रक्त की जरूरत हो तो खुद दान करते हैं या अपने समूह के साथियों से करवाते हैं। 30 जून को विश्व रक्तदाता दिवस पर हरियाणा में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें स्टार रक्तदाता के खिताब से सम्मानित किया गया। शिविर डायमंड रक्तदाता एवं पर्यावरण प्रहरी डॉ. अशोक कुमार ने लगाया था।
कमजोरी नहीं, स्फूर्ति आती है
नरेश शर्मा 19 अगस्त को शिमला आए तो सीधे आइजीएमसी पहुंच गए। वहां भी रक्तदान किया। कहते हैं रक्त देने से शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती है। उलटे स्फूर्ति का अहसास होता है। मन को अलग अहसास होता है कि आज एक जरूरतमंद के काम आए। खूनदान करने में समाज में गलत भ्रांतियां हैं। इसे जागरूकता के जरिये दूर किया जा सकता है।
पीजीआइ में भी करते हैं रक्तदान
नरेश शर्मा चंडीगढ़ स्थित पीजीआइ में भी हिमाचल के जरूरतमंदों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं। 17 साल की उम्र में कॉलेज के दिनों में पहली बार किसी मरीज को रक्त दिया था। तब डर लगा था। हादसे में
घायल व्यक्तियों की मदद करने के लिए कॉलेज की दीवारों पर पोस्टर लगे थे। उस दौरान युवाओं में भी जागृति नहीं थी। लेकिन मन में ठान लिया कि मानवता की मदद करनी है। अहसास हुआ था कि रक्त मानव
जीवन की रक्षा के लिए कितना महत्व रखता है। इसके बाद उन्होंने इसे अपना मिशन बना लिया। आजकल वह परवाणू में कारोबार कर रहे हैं।