खस्ताहाल सड़कें लील रही अनमोल जिंदगियां, रोज हो रहे नौ हादसे
पहाड़ी राज्य हिमाचल हादसों का प्रदेश साबित हो रहा है। हादसे थमने का नाम नहीं ले रही हैं। खस्ताहाल सड़कों के कारण प्रदेश में रोज नौ हादसे होते हैं।
राज्य ब्यूरो, शिमला : पहाड़ी राज्य हिमाचल हादसों का प्रदेश साबित हो रहा है। हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। राज्य में हर साल करीब एक हजार लोगों की मौतें सड़कों पर हो रही है और औसतन 3000 हादसे होते हैं। यहां की सर्पीली सड़कें खूनी कहला रही हैं। खस्ताहालत सड़कों की भेंट अनमोल जिंदगियां चढ़ रही हैं। खराब हालत और मानवीय चूक एक साथ जानलेवा बन रहे हैं। ऊपरी शिमला के जुब्बल के कुड्डू के समीप शनिवार को हादसे में 13 लोगों की मौत हो गई।
आंकड़ें बताते हैं कि हादसे रोकने के लिए सरकारों के दावों का धरातल पर कोई असर नहीं दिख रहा है। पुलिस विभाग के जागरूकता अभियान भी कागजी साबित हो रहे हैं। इनका प्रभाव होता तो सड़कों पर मौत का तांडव न दिखता। राज्य की सड़कों पर रोजाना नौ और हर साल औसतन तीन हजार दुर्घटनाएं हो रही हैं। एक दशक में 10 हजार से अधिक लोग हादसों का शिकार बने हैं। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार ज्यादातर दुर्घटनाएं मानवीय चूक, खस्ताहालत सड़कों के कारण हो रही हैं।
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सड़क हादसे
वर्ष,हादसे,मौतें,घायल
2008,2735,848,4714
2009,3076,1140,5579
2010,3073,1102,5325
2011,3099,1353,5462
2012,2901,1109,5248
2013,2981,1054,5080
2014,3059,1199,5680
2015,3010,1097,5109
2016,3156,1163,5587
2017,3119,1176,5338
2018,1815,691,3166
(इस साल के आंकड़े जुलाई तक के हैं।)
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कितनी सड़कें हैं पक्की
प्रदेश में 36 हजार किलोमीटर से अधिक मोटर योग्य सड़कें हैं। करीब 60 प्रतिशत सड़कें ही पक्की हैं। इनका भी उचित रखरखाव नहीं हो रहा है। इन कच्ची सड़कों पर थोड़ी सी भी बारिश हो जाए तो भू-स्खलन के कारण यातायात बाधित हो जाता है।
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पैरापिट नहीं
राज्य राजमार्गो पर भी पैरापिट नहीं है। ऐसी सड़कों की तादाद भी कम नहीं है। नई सड़कों के निर्माण में भी कई मार्गो में इनकी डीपीआर में इनका प्रावधान नहीं रखा गया है। ऐसे में इंजीनियरिंग पर भी सवाल उठते हैं।
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डंगे, क्रैश बैरियर का अभाव
प्रदेश में दुर्घटनाओं के दृष्टिकोण से संवेदनशील जगहों पर डंगे नहीं लगे हैं। ऐसी जगहों पर क्रैश बैरियर भी नहीं है। अगर ये दोनों व्यवस्था हो जाए तो उस हालात में हादसे कम होंगे। लेकिन लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों का इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं है।
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सड़कें सुधरने से बचेंगी जिंदगियां
जितनी मौतें सड़कों पर हो रही हैं, उतनी किसी युद्ध में भी नहीं होती हैं। सड़कों की हालत सुधारी जाए तो अनमोल जिंदगियों को बचाया जा सकता है।
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जांच होती है, कार्रवाई नहीं
जब भी कहीं बड़ा हादसा होता है तो सरकार मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दे देती है। इन जांच की रिपोर्ट आने तक फिर एक हादसा हो जाता है। ये अब औपचारिकताएं मात्र बन गई हैं। इनके आधार पर किसी के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती है। जानकारों की मानें तो हादसों की संभावना वाली सड़कों की लगातार निगरानी हो। इनकी आला स्तर पर तिमाही आधार पर समीक्षा की जाए। सड़कों की नियमित मरम्मत की जाए।