कैमरे में कैद हुए 46 हिम तेंदुए
हिमाचल में वन महकमे के वन्य प्राणी विग ने हिम तेंदुए (स्नो लैपर्ड) को बचाने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए विग ने पूरी तैयारियां की है। कैमरों में अब तक 46 की गतिविधियां कैद हुई हैं। ये कैमरे स्पीति पांगी जैसे क्षेत्रों में लगाए गए हैं। पूरे प्रदेश में इनकी तादाद एक सौ के करीब बताई गई है। सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट का भी इसी दुर्लभ वन प्राणी को बचाने पर फोकस है। पहले इसके लिए प्रारंभिक कार्यशाला आयोजित की। अब संगोष्ठी आयोजित की गई। इसमें हिम तेंदुए के संरक्षण के बारे में चर्चा की गई। गौरतलब है कि 2 अक्
राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल में वन विभाग के वन्य प्राणी विग ने हिम तेंदुए (स्नो लैपर्ड) को बचाने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए विग ने तैयारी पूरी कर ली है। प्रदेश में स्पीति व पांगी जैसे क्षेत्रों में लगाए कैमरों में अब तक 46 हिम तेंदुओं की गतिविधियां कैद हुई है। प्रदेश में इनकी तादाद 100 के करीब बताई गई है। सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट भी इसी दुर्लभ वन प्राणी को बचाने पर केंद्रित है।
वन विभाग प्रदेशभर में दो से आठ अक्टूबर तक 68वां वन्य प्राणी सप्ताह मना रहा है। इसी के तहत शिमला स्थित वन विभाग के सम्मेलन हॉल में रविवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें इस बात का खुलासा हुआ है। वन विभाग के अधिकारियों के अलावा प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन के विशेषज्ञों ने इसमें भाग लिया और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन ने स्नो लैपर्ड पर सर्वे किया है। इसकी अंतिम रिपोर्ट तैयार की जा रही है। सप्ताह का समापन शिमला के गेयटी थियेटर में होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर करेंगे। संगोष्ठी की अध्यक्षता पीसीसीएफ अजय कुमार ने की। इसमें पीसीसीएफ वन्य प्राणी डॉ. सविता समेत कई अधिकारी मौजूद रहे।
कहां पाया जाता है हिम तेंदुआ
हिम तेंदुआ भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, मंगोलिया, भूटान व रूस आदि दुनिया के 12 देशों में पाया जाता है। भारत में यह पांच राज्यों हिमाचल, सिक्किम, अरुणाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है। वन्य प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार हिमाचल में इसकी संख्या स्थिर बनी हुई है। यह ज्यादातर हिमाचल के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है।
........
हिम तेंदुए के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं। सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं। संगोष्ठी में भी इस पर गहन चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने इसमें शोध पर आधारित बातें सामने रखीं।
-डॉ. सविता, पीसीसीएफ वन्य प्राणी विग।