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जमानत के लिए जरूरी नहीं श्योरिटी बांड, कैश भी दे सकते हैं

जमानत के लिए श्योरिटी बांड (प्रतिभूति) ही जरूरी नहीं है इसकी जगह

By JagranEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 08:11 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 06:19 AM (IST)
जमानत के लिए जरूरी नहीं श्योरिटी बांड, कैश भी दे सकते हैं

विधि संवाददाता, शिमला : जमानत के लिए श्योरिटी बांड (प्रतिभूति) ही जरूरी नहीं है, इसकी जगह नकद राशि भी जमा करवाए जा सकते हैं। प्रदेश हाईकोर्ट ने पहली बार इस तरह की व्यवस्था दी है। हाईकोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार के अलावा गरिमा के साथ जीने की गारंटी देता है। किसी से जमानती के तौर पर खड़ा होने के लिए भीख मांगना या गुहार लगाना निश्चित तौर पर आरोपितों के गर्व को ठेस पहुंचाता है।

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यह टिप्पणी प्रदेश हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल के याचिकाकर्ता की याचिका की सुनवाई के दौरान की। याचिका में कोर्ट से यह निवेदन किया था कि उसे जमानत देते समय श्योरिटी बांड के बदले नकद राशि जमा करवाने की अनुमति दी जा जाए, क्योंकि वह किसी को नहीं जानता जो यकीनन उसके शियोरिटी के तौर पर खड़ा हो। वर्तमान स्थिति में पश्चिम बंगाल से ऐसा कोई नहीं है जो कि निश्चित बांड प्रस्तुत करने के लिए उसके लिए यात्रा कर सकता है।

जमानत देते समय जमानत के लिए नकद राशि जमा करवाने के अनुरोध की अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति अनूप चिटकारा ने कहा कि हमें पहले ही देर हो चुकी है कि हम श्योरिटी बांड के स्थान पर नकद राशि को प्रोत्साहित करें। नकदी से आरोपित की उपस्थिति की संभावना में सुधार होता है क्योंकि वह जानता है कि उसका पैसा सुरक्षित है। फिक्स्ड डिपोजिट पर ब्याज अर्जित कर रहा है। यह उसे एक बार भी चूक न करने के लिए भी प्रेरित करेगा।

याचिकाकर्ता को जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 व 120-बी के तहत 10 जनवरी 2020 को कुल्लू जिला के निरमंड पुलिस थाना में आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप है कि उसने निरमंड निवासी का वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) लेकर उसके बैंक खातों से 9,87,000 रुपये निकाल लिए। जस्टिस चिटकारा ने आगे कहा कि ऑनलाइन के आगमन को देखते हुए व्यावहारिक दृष्टिकोण यह है कि जमानत देते समय अदालत को अभियुक्त को एक विकल्प देना चाहिए कि वह एक निश्चित श्योरिटी बांड या एक निश्चित राशि जमा करवाए। कोर्ट ने कहा कि दंड संहिता प्रक्रिया की धारा 445 को अभियुक्त के अस्तित्व के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया है।


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