दो पूर्व डीजीपी आएंगे विजिलेंस जांच की जद में
हिमाचल पुलिस के दो पूर्व डीजीपी सोमेश गोयल और डीएस मिन्हास विजिलेंस जांच की जद में आएंगे। गोयल अभी डीजी जेल हैं। बूट खरीद मामले में विजिलेंस की नई जांच जल्द शुरू होगी। जांच पहले भी हो चुकी है। लेकिन शिमला की एक कोर्ट के आदेश से यह दोबारा होगी। इससे विजिलेंस की परेशानी भी बढ़ गई है।
राज्य ब्यूरो, शिमला : हिमाचल पुलिस के दो पूर्व डीजीपी सोमेश गोयल और डीएस मिन्हास विजिलेंस जांच की जद में आएंगे। गोयल अभी डीजी जेल हैं। बूट खरीद घोटाले की विजिलेंस जांच दोबारा जल्द शुरू होगी।
शिमला की एक कोर्ट के आदेश से जांच दोबारा होगी। इससे विजिलेंस की परेशानी भी बढ़ गई है। जांच एजेंसी तफ्तीश का जिम्मा किसे सौंपे, यह बड़ा सवाल बना हुआ है। वजह यह है कि पहले छोटे रैंक के अधिकारी ने जांच की थी। इससे इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठे थे। विजिलेंस ने क्लीनचिट देकर केस में कैंसलेशन रिपोर्ट तैयार की थी। इसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया। जिन बिदुओं पर इसे अस्वीकार किया गया, उनकी अब गहन जांच करनी होगी।
विजिलेंस जांच में डीएस मिन्हास तब डीजीपी, सोमेश गोयल एडीजीपी मुख्यालय और एसपीएस वर्मा डीआइजी प्रशासन के पद पर कार्यरत थे, के खिलाफ आरोप तैयार किए थे। तीनों के खिलाफ आरोप तैयार कर 26 दिसंबर 2013 को सरकार के पास भेजा गया। 6 मई 2017 को प्रधान सचिव विजिलेंस ने सूचित किया कि इनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के लिए मामला प्रशासनिक सचिव के हवाले किया। 31 मार्च 2017 को प्रशासनिक सचिव ने सोमेश गोयल के खिलाफ चार्जशीट ड्रॉप कर दी। डीजीपी डीएस मन्हास के खिलाफ विभागीय इन्क्वायरी करने की अनुमति 18 फरवरी 2015 को मांगी गई, लेकिन गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के इस संबंध में भेजे गए प्रस्ताव को 13 जुलाई 2015 को स्वीकार नहीं किया। वर्मा के खिलाफ विभागीय प्रोसीडिग आरंभ करने के लिए 23 अप्रैल 2014 को गृह मंत्रालय को भेजा। मंत्रालय ने राज्य सरकार से कुछ जानकारियां और मांगी थी। इसे 24 सितंबर 2015 को भेज दी गई। लेकिन मंत्रालय ने अभी तक स्वीकृति नहीं दी है। विजिलेंस ने शिमला की एक कोर्ट में पिछले साल 17 सितंबर को स्टेटस रिपोर्ट सौंपी। इसे इस कारण स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि गोयल, वर्मा के खिलाफ प्रोसीडिग सेक्शन किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची।
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तीन कंपनियों से की थी खरीद
विजिलेंस ने 7 जून 2013 को एफआइआर दर्ज की थी। जिन अफसरों पर आरोप लगे वे डीआइजी से लेकर डीजी रैंक के थे। जांच का जिम्मा डीएसपी रैंक के अधिकारी को दिया गया था। इससे जांच पर कई तरह के सवाल खड़े हुए। जूते के तीन कंपनियों ने टेंडर भरे थे। इनमें से दो अन्य राज्यों की थी। तकनीकी आधार पर ये बाहर हो गई थीं। बावजूद इसके इनसे ही खरीद की गई। इस पर एक करोड़ खर्च हुआ था। जूतों की गुणवत्ता घटिया पाई थी।