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पिता ने दिखाई राह, बेटी ने भरी उड़ान

हंसराज सैनी मंडी पिता ने राह दिखाई तो बेटी ने उड़ान भरने में देरी नहीं लगाई। सेना मे

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Oct 2021 10:34 PM (IST)Updated: Wed, 06 Oct 2021 10:34 PM (IST)
पिता ने दिखाई राह, बेटी ने भरी उड़ान
पिता ने दिखाई राह, बेटी ने भरी उड़ान

हंसराज सैनी, मंडी

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पिता ने राह दिखाई तो बेटी ने उड़ान भरने में देरी नहीं लगाई। सेना में शामिल होने की ठानी तो परीक्षा उत्तीर्ण कर दम लिया। हरियाणा के महेंद्रगढ़ के पावेर गांव की रहने वाली नेहा ग्रेवाल ने संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया है।

नेहा ग्रेवाल ने 2018 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की थी। वर्तमान में वह हैदराबाद में एक कंपनी में कार्यरत है। दिसंबर में आफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी चेन्नई में ज्वाइन करेंगी। सीडीएस परीक्षा में देशभर में दूसरी रैंकिंग हासिल करने वाली नेहा ग्रेवाल नतीजा आने के बाद स्वजन से नहीं मिली है। स्वजन राजस्थान के जयपुर में रहते हैं। पिता रामचंद्र ग्रेवाल रेलवे से सेवानिवृत्त हुए हैं। मां प्रेमलता गृहिणी हैं। बड़ा भाई मुंबई में आयकर अधिकारी है। छोटा भाई पर्सनल जिम ट्रेनर है। नेहा की स्कूली शिक्षा जयपुर में हुई। जमा दो उत्तीर्ण करने के बाद हर बच्चे व उसके स्वजन के समक्ष एक सबसे बड़ा प्रश्न न होता है कि अब कौन सा रास्ता चुने। रामचंद्र ग्रेवाल ने इसके लिए बेटी पर कोई दबाव नहीं बनाया। उन्होंने कालेज में पढ़ाई या फिर इंजीनियरिग को अपना क्षेत्र चुनने की खुली छूट दी। पिता की दिखाई राह पर चल नेहा ने बीटेक करने का निर्णय लिया। अखिल भारतीय इंजीनियरिग प्रवेश परीक्षा पास की। आइआइटी मंडी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग ट्रेड मिला। स्वजन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। 2018 में बीटेक करते ही नेहा का चयन हैदराबाद की एक कंपनी में हो गया। बीटेक करने के बाद वह वायुसेना में शामिल होना चाहती थी, लेकिन उम्र आड़े आ गई। सीडीएस पास कर सेना में जाने की ठानी। पांच बार मिली असफलता से उसने हौसला नहीं हारा। परीक्षा की तैयारी में नौकरी आड़े आ रही थी। तैयारी के लिए उचित समय नहीं मिल पा रहा था। 2020 में छठी बार परीक्षा दी और देशभर में दूसरी रैंकिग हासिल की। मिस करती हैं मंडयाली धाम व सिड्डू

देवभूमि हिमाचल की वादियां बहुत खूबसूरत हैं। प्रदूषण नाम की कोई चीज नहीं है। मैदानी क्षेत्रों में ऐसा साफ वातावरण नहीं दिखता। 2014 में जब जयपुर से यहां आई थी तो पहाड़ देख कुछ अटपटा लगा था, यहां की वादियों व संस्थान में चार साल कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला। मंडी की मंडयाली धाम व कुल्लू के सिड्डू आज भी मिस करती हूं। हिमाचल के लोग बहुत ईमानदार हैं। उनका मोबाइल फोन गुम हो गया था। जिस व्यक्ति को मोबाइल मिला था वह उसे देने संस्थान पहुंच गया था। वह यहां के लोगों की ईमानदारी देख हैरान रह गई थी। बकौल नेहा, पिता ने उन्हें करियर चुनने के लिए खुली छूट दी, उन्हीं की बदौलत आज वह इस मुकाम तक पहुंच पाई है।


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