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..तब भाकपा प्रत्याशी को नहीं मिला था एक भी वोट

क्षेत्र के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र मंडी में वामदल जीत नहीं बल्कि मतदाताओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को लेकर चुनाव लड़ते हैं। हर चुनाव में वामदलों का उम्मीदवार बदल जाता है। वामदलों ने क्षेत्र के मतदाताओं की नब्ज टटोलने के लिए 1957 में पहली बार यहां अपना प्रत्याशी उतारा था। उस समय भाकपा के मस्त राम ने चुनाव लड़ा था। चुनाव मैदान में सिर्फ तीन उम्

By JagranEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 07:45 AM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 07:45 AM (IST)
..तब भाकपा प्रत्याशी को नहीं मिला था एक भी वोट
..तब भाकपा प्रत्याशी को नहीं मिला था एक भी वोट

हंसराज सैनी, मंडी

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क्षेत्र के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र मंडी में वामदल जीत नहीं बल्कि मतदाताओं में उपस्थिति दर्ज करवाने को लेकर चुनाव लड़ते हैं। हर चुनाव में वामदलों का उम्मीदवार बदल जाता है।

वामदलों ने क्षेत्र के मतदाताओं की नब्ज टटोलने के लिए 1957 में पहली बार प्रत्याशी उतारा था। उस समय भाकपा के मस्त राम ने चुनाव लड़ा था। चुनाव मैदान में सिर्फ तीन उम्मीदवार थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आइएनसी) की तरफ से तत्कालीन मंडी रियासत के राजा जोगेंद्र सेन बहादुर उम्मीदवार थे। आनंद चंद ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था। जोगेंद्र सेन 63.47 प्रतिशत मतों के साथ विजयी रहे थे। भाकपा के मस्त राम को एक भी वोट नहीं पड़ा था। निर्दलीय आनंद चंद को 36.57 फीसद वोट मिले थे। इससे वामदलों की खूब किरकिरी हुई थी। इस फजीहत के बाद वामदलों ने यहां चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया था। करीब 20 साल बाद 1977 में वामदल फिर चुनावी दंगल में आए। इस बार माकपा ने तारा चंद को उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में जनता पार्टी के गंगा सिंह ठाकुर विजयी रहे थे। गंगा सिंह को 53.19 व कांग्रेस के वीरभद्र सिंह को 39.52 व माकपा के तारा चंद को 3.45 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद वामदल फिर चुनावी अखाड़े से दूर हो गए। 1989 के चुनाव में फिर किस्मत आजमाने उतरे इस बार डीएन कपूर माकपा उम्मीदवार थे। तब भाजपा के महेश्वर सिंह ने कांग्रेस के पंडित सुखराम को शिकस्त दी थी। महेश्वर सिंह को 50.36, सुखराम को 44.33 प्रतिशत वोट मिले थे। माकपा के डीएन कपूर की गाड़ी मात्र 2.09 फीसद मतों पर अटक गई थी। इसके बाद वामदल फिर चुनावी राजनीति से दूर हो गए। 2009 के चुनाव में माकपा ने अपने वरिष्ठ नेता डॉ. ओंकार शाद को यहां से मैदान में उतारा, उन्हें मात्र 2.89 फीसद वोट ही मिले। 10 साल बाद यहां वामदलों के वोट बैंक में मात्र 0.80 का इजाफा हुआ था। कांग्रेस के वीरभद्र सिंह को 47.82 व भाजपा के महेश्वर सिंह को 45.85 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में माकपा फिर नए चेहरे के साथ मैदान में उतरी। इस बार अपने युवा तुर्क कुशाल भारद्वाज को मैदान में उतारा। मोदी लहर में उनकी झोली में मात्र 1.92 फीसद वोट आए। 2009 के मुकाबले 2014 में वामदलों का वोट बैंक बढ़ने की बजाय एक फीसद घट गया। कुशाल भारद्वाज जमानत भी नहीं बचा पाए। अब माकपा ने यहां से दलीप सिंह कायथ को उम्मीदवार घोषित किया है।


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