फीकी पड़ी जलेबी की मिठास
कोरोना संक्रमण से छोटी काशी मंडी की प्रसिद्व देसी जलेबी की मिठास फीकी हो गई है। बीमारी से ऐहतियात बरतने के लिए लोगों ने जलेबी की दुकानों की ओर अपना रूझान कम कर दिया है। मिठाईयों की दुकानों से भी रौनक गायब हो गई है। शहर की पॉल् स्वीट्स मनपंसद और लाहौरिया की दी हट्टी देसी जलेबी के लिए मशहु र है। शहवासी समेत अन्य लोग इसे खूब पंसद करते हैं। अब कोरोना के कारण जलेबी की मिठास कम हो गई है। खरीदारों को आवागमन भी कम हो गया है। पॉल मनपंसद और
फरेंद्र ठाकुर, मंडी
कोरोना काल में छोटी काशी मंडी की मशहूर देसी घी की जलेबी की मिठास अब फीकी हो गई है। बीमारी से एहतियात बरतने के लिए लोगों ने मिठाई की दुकानों की ओर अपना रूझान कम कर दिया है, इतना ही नहीं मिठाइयों की दुकानों से भी रौनक गायब हो गई है। शहर की पॉल स्वीट्स, मनपसंद और लाहौरिया दी हट्टी देसी घी की जलेबी के लिए मशहूर हैं। पॉल, मनपंसद और लाहौरिया की दुकानों में प्रतिदिन महज चार से पांच किलो जलेबी ही तैयार हो रही हैं, जिससे संचालकों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। कर्फ्यू से पहले शहर में लोगों की चहलकदमी रहती है। एक-एक दुकान में प्रतिदिन 50 से 100 किलोग्राम के आसपास देसी घी की जलेबियां बिकती थी। अब खरीदार दुकानों को रुख नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा मिठाइयों भी कम ही बिक रही हैं। लाहौरिया दी हट्टी के मालिक आशीष का कहना है कि कोरोना से लोग सहमे हुए है। इसलिए दुकानों में लोगों का आना जाना कम हो गया है। कर्फ्यू से पहले दुकानों में देसी घी की जलेबियों की अधिक डिमांड रहती थी। पनीर की जलेबी की भी भारी डिमांड
लाहौरिया दी हट्टी की दुकान में पनीर की बनी जलेबियों की भी अधिक डिमांड रहती थी। यह देसी घी की जलेबी से महंगी बिकती है। इसका दाम 350 रुपये है, जबकि देसी घी की जलेबियां 300 रुपये प्रतिकिलो हैं। बर्फी, लड्डू, रसमलाई के भी यही हालात
मनपसंद स्वीट्स के संचालक अशोक कुमार का कहना है देसी घी की जलेबी के अलावा बर्फी, लड्डू, रसमलाई, रसगुल्ले, गुलाब जामुन, पेड़े, मिल्क केक, चॉकलेट, बर्फी और बेसन के भी यही हालात हैं। यह मिठाइयां भी नहीं बिक रही हैं। पहले प्रतिदिन एक मिठाई की 25 से 30 ट्रे बनाते थे, लेकिन अब दिन में महज एक ट्रे ही मिठाई की बना रहे हैं।