सुखराम परिवार के खिलाफ खुलकर खेलेगी भाजपा
कल तक रक्षात्मक तरीके से अपनी पारी को आगे बढ़ा रही भाजपा अनिल शर्मा के मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद अब सुखराम परिवार के विरुद्ध खुलकर बल्लेबाजी करेगी। मंत्री पद से इस्तीफा आते ही भाजपा नेताओं ने अब अनिल शर्मा पर विधायक पद से इस्तीफा देने की मांग कर उन पर दबाव बढ़ा दिया है।
हंसराज सैनी, मंडी
कल तक रक्षात्मक तरीके से अपनी पारी को आगे बढ़ा रही भाजपा अनिल शर्मा के मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद अब सुखराम परिवार के विरुद्ध खुलकर बल्लेबाजी करेगी। मंत्री पद से इस्तीफा आते ही भाजपा नेताओं ने अब अनिल पर विधायक पद से इस्तीफा देने की मांग कर उन पर दबाव बढ़ा दिया है। इस्तीफा देने के बाद भी अनिल चाह कर भी अपने बेटे आश्रय शर्मा का खुलकर प्रचार नहीं कर पाएंगे। उन पर दल बदल कानून की तलवार की हमेशा लटकी रहेगी। अपने समर्थकों का कुनबा संभाल कर रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। आश्रय को राजनीति में स्थापित करने की पहल अनिल व सुखराम के राजनीति सफर पर भारी पड़ सकती है। अनिल के इस्तीफे बाद अब जिला के किसी वरिष्ठ विधायक की लाटरी खुल सकती है। चुनाव के बाद जिला को नया मंत्री मिल सकता है।
सुखराम का परिवार विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद भाजपा में शामिल हुआ था। चुनाव जीतने के बाद सरकार में मंत्री पद मिल गया। डेढ़ साल में अनिल ने पार्टी के कई कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखी। टिकट को लेकर बवाल शुरू होने के बाद वह पूरी तरह से अलग थलग पड़ गए थे। अगर वह विधायक पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस में भी चले जाते है जैसी की चर्चा है तो इससे भाजपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। सदर हलके में अनिल को अब तक भाजपा की गुटबाजी का लाभ मिलता आया है। साईगलू में वीरवार को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सभा में उमड़ी भीड़ व भाजपा नेताओं की एकजुटता किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। विधायक पद से इस्तीफा देने की सूरत में भाजपा से दो हाथ करने से पहले उन्हें टिकट की जंग लड़नी होगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में अनिल के भाजपा में जाने पर कांग्रेस ने यहां से वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर को मैदान में उतारा था। संसदीय क्षेत्र की फिजा भी अब पूरी तरह से बदली हुई है। 17 में से 13 हलकों में भाजपा काबिज है। कांग्रेस के पास मात्र तीन सीटें हैं। जोगेंद्रनगर हलके से निर्दलीय विधायक प्रकाश राणा अब भाजपा का हिस्सा बन चुके है। ऐसे में अनिल के मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद क्षेत्र की राजनीति पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा।