पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ नहीं
रबी की फसल के पील रतुआ बीमारी के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए कृषि विभाग ने कमर कस ली है।
सहयोगी, गोहर : गेहूं की फसल को पीला रतुआ से बचाने के लिए कृषि विभाग ने कमर कस ली है। कृषि विषयवाद विशेषज्ञ डॉ. धर्मचंद चौहान ने बताया कि इस समय ज्यादातर क्षेत्र में गेहूं की बिजाई को 40 दिन हो गए हैं। कई बार नमी वाले तराई क्षेत्रों में गेहूं, मटर की फसल को पीला रतुआ बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में समय रहते किसानों को इस रोग का प्रबंधन करना चाहिए।
रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिलीलीटर प्रोपीकोनेजोल 25 ईसी या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें। कहा कि मुख्यत: पीला रतुआ पहाड़ों के तराई क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो में मैदानी क्षेत्रों में भी रोग पाया गया है। कृषि विशेषज्ञ के अनुसार इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं, साथ ही पोपलर व यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आ जाता है।
पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ नहीं है, पीला रंग होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। पीला रतुआ बीमारी में गेहूं व मटर के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है, जिसे छूने पर हाथ पीला हो जाता है। पीला पदार्थ धीरे-धीरे पूरी पत्तियों को पीला कर देता है। पीला पाउडर जमीन पर गिरा हुआ भी देखा जा सकता है। पहली अवस्था में यह रोग खेत में 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे में शुरू होकर बाद में पूरे खेत में फैल जाता है। तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती हैं।