परिवार-दोस्तों संग बिताएं समय, खुश रहें
बदलती जीवन शैली और भागदौड़ भरी ¨जदगी के बीच व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो रहा है।
संवाद सहयोगी, मंडी : बदलती जीवनशैली और भागदौड़ भरी ¨जदगी के बीच व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो रहा है। परिवार के सदस्यों को समय न दे पाने से चिड़चिड़ेपन की भावना घर कर रही है। सहनशीलता का अभाव होने से रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो रही है। छोटी-छोटी बातों पर लोग तैश में आकर कहीं खुद जान दे रहे हैं या दूसरों की जान लेने की कोशिश कर रहे हैं। इससे रिश्तों की डोर भी कमजोर हो रही है। अकेलेपन की वजह से लोग मानसिक रोग के शिकार हो रहे हैं। ¨चताजनक यह है कि ज्यादातर युवा इसकी चपेट में हैं। बेहतर यही है कि परिवार के साथ समय बिताएं और खुश रहें। इससे तनाव मुक्त रहेंगे।
लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक की मनोचिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. सोनाली महाजन का कहना है युवाओं को अवसाद से बाहर निकालने के लिए एकमात्र उपाय उचित मार्गदर्शन है। यदि युवाओं को समय पर उचित मार्गदर्शन मिल जाए तो वे इससे बच सकते हैं। लोगों में तनाव का मुख्य कारण जीवनशैली है। लोगों की उम्मीदें ज्यादा हैं और वह कम समय में बहुत कुछ पाना चाह रहे हैं। कम समय में क्षमता से अधिक पाने की होड़ लगी हुई है। जब उम्मीद के मुताबिक कुछ हासिल नहीं हो पाता तो युवा नशे का सहारा ले रहे हैं और नशे की लत पड़ रही है।
समाज में संयुक्त परिवार के बजाय एकल परिवार का प्रचलन बढ़ा है। पति-पत्नी दस से चौदह घंटे घर से बाहर रहते हैं। नवविवाहित जोड़े शादी से पहले तो एक-दूसरे पर बहुत भरोसा करते हैं, लेकिन बाद में वह तेजी से कम होने लगता है। ऑफिस में ज्यादातर समय उनका कंप्यूटर व इंटरनेट के सामने गुजरता है, जिससे परिवार व बच्चों को समय न दे पाने पर घर में भी कलह का माहौल बनता है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक दूसरे की व्यस्तता भी रिश्तों पर भारी पड़ रही है। इसके अतिरिक्त मां-बाप की बच्चों से अधिक अपेक्षाएं भी उन्हें तनावग्रस्त बना रही हैं। बच्चों को कसौटी पर खरा न उतरने पर परिवार में तनाव बढ़ रहा है।
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तनाव के लक्षण
किसी काम में मन न लगना, पूरी दिन उदास रहना और थका हुआ महसूस करना, बहुत कम सोना, बेचैनी होना तथा खुद पर भरोसा न रहना आदि डिप्रेशन के लक्षण है। इससे मेंटल डिसऑर्डर, माइग्रेन, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदयरोग जैसे गंभीर रोग पनपते हैं।
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बचाव एवं उपचार
तनाव से बचाव के लिए ध्यान व व्यायाम करना चाहिए। पूजा, पाठ करना चाहिए। अपनी बात को अपने परिवार के सदस्यों व दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं और उनसे सारी बातें साझा करें। इससे तनाव को कम किया जा सकता है। इसके अलावा मनोचिकित्सा विशेषज्ञ का मार्गदर्शन लेना चाहिए।