अंतरराष्ट्रीय दशहरे में निकलेगी भगवान नरसिंह की जलेब
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे के पहले दिन को छोड़ सभी दिनों में राजा की जलेब निकलती है, राजा पालकी में बैठकर पूरे ढालपुर मैदान का चक्कर लगाते है।
कुल्लू, जेएनएन। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे के दूसरे दिन कलाकेंद्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम आरंभ हो गए हैं। वहीं छ: दिनों तक रघुनाथजी की मूर्ति के पास ही अस्थायी रूप से निर्मित मंदिर में रखा जाता है, जहां छ: दिन तक लगातार रामायण का पाठ होता रहता है।
आज निकलेगी राजा की जलेब
दशहरे के पहले दिन को छोड़ कर वाकई सभी दिनों राजा की जलेब निकलती है। कुछ देवताओं के साथ राजा (छड़ीबदार) पालकी में बैठकर पूरे ढालपुर मैदान का चक्कर लगाते है। देवताओं की पालकी के आगे नरसिंह की घोड़ी भी चलती है। छठा दिन मोहल्ले का दिन होता है। इस दिन मेले में आये सभी देवता रघुनाथ के दरबार में हाजिरी देते हैं व आशीष ग्रहण करते हैं। इस दिन को देवताओं के मिलन के कारण ही मोहल्ला कहा जाता है। गांव में इस दिन पशुओं की पूजा की जाती है। मुहल्ले की रात्रि को पूर्णमासी के चांद की रोशनी में सभी देवताओं के कैम्पों के बाहर नाटी नाची जाती है। राजा की चनणी (अस्थाई कैंप) के बाहर रात को महादेव की हेसण दशहरे के अधिपति देवता रघुनाथ जी के ढालपुर मैदान में दशहरे के लिए बनाये अस्थायी मंदिर के सामने नृत्य करती है। इसे चन्द्रावली नृत्य कहा जाता है। जो हरण लोक नाटय के शुभारभ्म की औपचारिकता होती है।
कुल्लू दशहरा में लंका दहन
मेले के अंतिम दिन लंका दहन होता है। दोपहर को रघुनाथ जी के रथ को मैदान के दूसरे छोर तकव्यास नदी के किन्नारे तक ले जाया जाता है, जहां कई दिनों से एकत्रित झाडिय़ों को लंका दहन के प्रतीक के रूप में जलाया जाता है। साथ ही भैंस, सुअर, केकड़े, मुर्गे व मछली की बलि दी जाती है, कुछ वर्षों से केवल नारियल की ही बलि दी जा रही है। जो देवी हडिम्बा को समर्पित होती है। बलि देने के बाद रथ को उसी रास्ते से वापिस मूल स्थान तक लाया जाता है। यहां से मूर्ति को छोटी पालकी में सुल्तानपुर पहुंचाया जाता है। लंका दहन के दिन लग क्षेत्र में अनाज भून कर 'धाणे' बांटी जाती है। मेले की समाप्ति पर मेले में आए सभी देवी-देवताओं को मेला कमेटी की तरफ से नजराना भी दिया जाता है।