दैवीय शक्तियों संग माता हडिंबा कुल्लू रवाना, हजारों श्रद्धालुओं ने लिया आशीर्वाद
आराध्य देवी माता हडिंबा दैवीय अंतरराष्ट्रीय दशहरे की शान बढ़ाने कुल्लू रवाना हो गई ।
मनाली, जसवंत ठाकुर। अंतरराष्ट्रीय दशहरे की शान बढ़ाने को कुल्लू राजवंश की दादी व घाटी की आराध्य देवी माता हडिंबा दैवीय शक्तियों संग अपने सैंकड़ों कारकूनों व देवलूयों सहित कुल्लू रवाना हो गई। माता हडिंबा परिसर से पीडब्ल्यूडी कैंपस तक हजारों श्रद्धालुओं ने माता हडिंबा से सुख व समृद्धि का आशीर्वाद लिया। भक्तों ने जगह-जगह माता का स्वागत किया और देवलूओं कारकूनों को प्रसाद बांटा। वीरवार सुबह ही माता हडिंबा का ढुंगरी प्रांगण देव वाद्य यंत्रों की धुन से गूंज उठा।
श्रद्धालुओं व कारकूनों द्वारा आराध्यदेवी की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। माता ने ढुंगरी और मनाली बाजार के दुर्गा मंदिर प्रांगण में गुर के माध्यम से दशहरे में सब कुछ ठीक रहने की बात कही। माता हडिम्बा का काफिला सुबह साढ़े सात बजे ढुंगरी से रवना हुआ। जगह-जगह भक्तों व श्रद्धालुओं द्वारा माता का जोरदार स्वागत किया गया। एक किमी की दूरी तय करने में माता को डेढ़ घंटे से अधिक का समय लग गया। माता ने इस बीच हजारों श्रद्धालुओं को सुख व समृद्धि का आशीर्वाद दिया। माल रोड मनाली में स्थित दुर्गा मंदिर में माता का काफिला आधा घंटा रुका। माता हडिम्बा के मनाली माल रोड पहुंचते ही माल रोड देव वाद्य यंत्रों की धुन से गूंज उठा।
सैंकड़ों पर्यटकों ने भी इन लम्हों को कैमरे में कैद किया। पीडब्ल्यूडी विभाग मनाली की ओर से प्रांगण में पहुंचने पर माता हडिंबा का जोरदार स्वागत किया गया। विभाग ने माता के स्वागत के साथ-साथ श्रद्धालुओं व कारकूनों के लिए प्रसाद की व्यवस्था भी की। पीडब्ल्यूडी विभाग 1976 से माता के दशहरे में जाने के दौरान श्रद्धालुओं को प्रसाद व जलपान ग्रहण करवाता रहा है। पीडब्ल्यूडी विभाग मनाली के एसडीओ पवन राणा ने माता हडिंबा का स्वागत किया और सुख समृद्धि का आशीर्वाद लिया। माता के पुजारी रोहित राम शर्मा और कारदार नेगी ने बताया कि माता ने दशहरे में स्वयं सब कुछ ठीक करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि माता सैंकड़ों श्रद्धालुओं संग दशहरे के लिए कुल्लू रवाना हो गई है।
माता हिडिंबा के पहुंचने पर ही होती है दशहरा उत्सव की शुरूआत
माता हिडिंबा की उपस्थिति में ही दशहरे की शुरुआत होती है। जेठ की संक्रांति को अवतार लेने वाली महामाई ने देवी-देवताओं पर अत्याचार करने वाले राक्षसों का वध कर सभी ऋषि मुनियों को राहत दिलाई थी। महाभारत में भगवान कृष्ण की विजय के लिए अपने शक्तिशाली पुत्र घटोत्कच्छ का बलिदान देकर महाभारत जिताने वाली माता हिडिंबा कलयुग में मुरादें पूरी कर रही हैं। मंदिर का निर्माण कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने सन 1553 में करवाया था। हिडिंबा देवी का इतिहास पांडवों से जुड़ा है। हिडिंब ने अपनी बहन हिडिंबा से जंगल में भोजन की तलाश में जहां उसकी मुलाकात पाडव पुत्र भीम व उनके परिवार से हो गई। भीम से शादी करने के बाद उनका एक पुत्र पैदा हुआ घटोत्कछ। जिसने महाभारत युद्ध में पांडवों को विजयी करने में अहम भूमिका निभाई। पां्डुपुत्र भीम से विवाह करने के बाद हिडिंबा मानवी बन गई और कालांतर में मानवी से देवी बन गई।
दुनिया भर में प्रसिद्ध है माता हिडिंबा मंदिर
महाभारत के महाबली भीम की पत्नी और कुल्लु राजवंश की कुलदेवी माता हिडिंबा का मंदिर देश व दुनिया में प्रसिद्ध है। मंदिर की तीन छतों का निर्माण देवदार की लकड़ी के तख्तों से हुआ है जबकि उपर की चैथी छत तांबे एवं पीतल से बनी है। नीचे की छत सबसे बड़ी, दूसरी उससे छोटी, तीसरी उससे भी छोटी और चैथी सबसे छोटी है। सबसे छोटी छत एक कलश जैसी नजर आती है। करीब 40 मीटर उंचे शंकु के आकार में बने इस मन्दिर की दीवारें पत्थर की है। प्रवेश द्वार और दीवार पर सुन्दर नक्काशी हो रही है। अन्दर एक शिला है जिसे, देवी का विग्रह रूप मानकर पूजा जाता है। हर साल जेष्ठ माह में यहां मेला लगता है। यहां पर भीम के पुत्र घटोत्कच का भी मन्दिर है।