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सेब के दामों में आई गिरावट, ऊंचाई वाले बागवानों को नहीं मिले अच्‍छे दाम

ऊंचाई वाले इलाकों से अब उतम किस्म का सेब मंडियों में नहीं आ रहा है। इस कारण सेब के दाम में लगातार गिरावट आ रही है। सेब सीजन इन दिनों अब अंतिम चरण पर है। ऐसे में ऊंचाई वाले बागवानों को इस वर्ष अच्छे दाम नहीं मिल पाए हैं।

By Richa RanaEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 05:02 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 05:02 PM (IST)
सेब के दामों में आई गिरावट, ऊंचाई वाले बागवानों को नहीं मिले अच्‍छे दाम
कुल्‍लू में ऊंचाई वाले बागवानों को सेब के अच्‍छे दाम नहीं मिल रहे।

देवेंद्र ठाकुर, कुल्लू। ऊंचाई वाले इलाकों से अब उतम किस्म का सेब मंडियों में नहीं आ रहा है। इस कारण सेब के दाम में लगातार गिरावट आ रही है। सेब सीजन इन दिनों अब अंतिम चरण पर है। ऐसे में ऊंचाई वाले बागवानों को इस वर्ष अच्छे दाम नहीं मिल पाए हैं। हर वर्ष ऊंचाई वाले इलाकों के सेब बागवानों को अच्छे दाम मिलते थे लेकिन इस बार सबसे कम दाम मिले हैं। वीरवार को सब्जी मंडियों में 850 रूपये प्रति 20 किलो की सेब की पेटी बिकी। इससे पूर्व इस वर्ष सबसे अधिक 2400 रूपये प्रति किलो सेब की पेटी बिकी है। ऐसे में बागवानों को शुरू में अच्छे दाम मिले हैं। हालांकि इस वर्ष सेब कम था इस कारण शुरू में सेब के मूल्य अच्छे रहे और बाद में धीरे धीरे दाम कम होते गए। कुल्लू की सब्जी मंडियों में 55 रूपये प्रति किलो सेब बिका। ऐसे में यहां पर प्रति किलो के आधार पर सेब की खरीद की जाती है। यहां पर अधिकतम मुल्य इस बार 120 रूपये तक रहा। जिला कुल्लू की आठ सब्जी मंडियों में अभी तक कुल 15 लाख 17 हजार 826 पेटियां पहुंची है। सबसे ज्यादा सेब की पेटियां इस बार बंदरोल सब्जी मंडी में पहुंची और सबसे कम कुल्लू के अखाड़ा बाजार में पहुंची है। इसके अलावा इस वर्ष विदेशों वैरायटी के सेब के बागवानों को इस बार सबसे अच्छे दाम मिले हैं। इसमें जेरोमाइन, गेलगाला, सुपर चीफ, स्कारलेट सेब की मंडियों में आढ़तियों की भी अधिक डिमांड रही है। इस बार इन सेब के 1200 रूपये प्रति पेटी से लेकर 2200 रूपये प्रति पेटी सेब की बिकी। ऐसे में अब बागवान इन सेब के पौधों को लगाने की फिराक में हैं। ज्यादातर बागवानों ने इस बार पहले से ही विदेशी वैरायटी के सेब के पौधों की डिमांड देना शुरू कर दिया है।

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सबसे जल्द तैयार होता है सेब

रॉयल सेब को अब बागवान ज्यादा तरजीह नहीं दे रहे हैं। हालांकि रॉयल सेब की मंडियों में अच्छी खासी डिमाड रहती है लेकिन इससे भी ज्यादा विदेशी वैरायटी के सेब को तब्बजो दी जा रही है। यह सेब का पौधा दो वर्ष में ही फसल देना शुरू कर देता हैं। बागवान कृष्ण ठाकुर का कहना है कि मैंने अभी तक करीब 50 पौधे विभिन्न वैरायटी के लगाए हैं। मेरे पास कलम और पौधों की डिमांड अभी से आने लगी है।

एपीएमसी सचिव सुशील गुलेरियां सेब सीजन अब अंतिम चरण पर है। इस बार शुरू में बागवानों को अच्छे दाम मिले हैं और इस कारण सेब बागवान खुश है। इसके लिए एपीएमसी द्वारा बागवानों को सभी प्रकार की सुविधा मुहैया करवाई गई। कोरोना काल में भी लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े इसके लिए पुख्ता इंतजाम किए गए थे।


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