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Kullu Bus Accident : दर्दनाक मंजर देख युवाओं ने भी हारी हिम्मत

Kullu Bus Accident बंजार बस हादसे ने लोगों के दिलों को झकझोर कर रख दिया है वीरवार शाम एक निजी बस खाई में गिर गयी जिससे उसमें सवार 44 लोगों की मौत हो गई।

By Babita kashyapEdited By: Published: Fri, 21 Jun 2019 09:29 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jun 2019 09:29 AM (IST)
Kullu Bus Accident :  दर्दनाक मंजर देख युवाओं ने भी हारी हिम्मत
Kullu Bus Accident : दर्दनाक मंजर देख युवाओं ने भी हारी हिम्मत

मंडी, जेएनएन। भयोट मोड़ पर हुए निजी बस हादसे ने मंडी व कुल्लू जिला की जनता को झकझोर कर रख दिया है। हादसे के बाद बंजार सराज के टील, बाहु, जीभी, घ्यागी, खाबल, मोहणी, पेड़चा, डि बरचाहड़ी, पाटन और मंडी सराज के खौली, थाचाधार, खनार, घाट पंचायतों के कई गांवों में मातम पसर गया है। कॉलेज के छात्र व हिमकेयर स्वास्थ्य कार्ड बनवाने आए गाड़ागुशैणी क्षेत्र के कई परिवार बंजार बस स्टैंड पर चार बजे इस बस में सवार हुए थे।

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मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह हलके सराज का खौली इस बस का अंतिम पड़ाव था। खौली में बस सायं पांच बजे पहुंचती है। बस में बंजार से ही 50 से अधिक यात्री बैठ गए थे। बंजार से करीब तीन किलोमीटर दूर भयोट में तीखे मोड़ पर बस अनियंत्रित होकर खाई में गिरी तो आसपास के लोग ऊंचाई देख सन्न रह गए। वहां मौजूद लोगों ने आसपास के गांवों को हादसे की सूचना दी। इसके बाद सैकड़ों लोग घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े। बारिश के कारण राहत एवं बचाव कार्य तेजी नहीं पकड़ सका। 

बस गिरने की सूचना मिलते ही गाड़ागुशैणी इलाके से लोग टैक्सी करके मौके पर पहुंचे और अपने परिचितों को तलाशने में जुट गए। किसी को अपनी पत्नी का शव मिला तो किसी को बेटी का। यह मंजर देख राहत कार्य में लगे युवाओं की हिम्मत भी जवाब दे गई। शवों को उठाने के बजाय लोग चीखते चिल्लाते महिलाओं व बच्चों को संभालने में लगे रहे। खौली जैसे दुर्गम क्षेत्र में जब देर सायं हादसे की सूचना मिली तो पूरा गांव सिसकियों से कराह उठा। 

क्षेत्र के 20 गांवों में पसरा मातम, नहीं जला चूल्हा बस हादसे के बाद जैसे ही सूची प्रशासन ने जारी की तो 20 गांवों में मातम छा गया। यह हादसा 20 गांवों के कई लोगों को लील गया। भूमियां, छुनार, पेड़चा, छनास, थनवाड़ी, गडशांऊं, चौहड़ी, खंड़ा, खौली, मोहणी, बाहु, बछूट, सरकीधार, सूम व गाड़ागुशैणी के करीब 20 लोगों के शवों की देर शाम तक पहचान हो सकी। अपनों की तलाश में लोग कुल्लू, मंडी और बंजार भागते रहे। कई गांवों में चूल्हा नहीं जला। लोगों को अस्पताल पहुंचने के लिए वाहन तक नहीं मिले। इससे वह पैदल ही अस्पताल को घरों से निकले।  

पैरापिट होते तो बच जाती कई जान

बंजार के निकट खतरनाक मोड़ काटते समय हुए बस हादसे से समूचे क्षेत्र में मातम पसर गया है। घटनास्थल पर अगर क्रैश बैरियर व पैरापिट होते तो शायद हादसा नहीं होता। स्थानीय लोगों ने लोक निर्माण विभाग से इस स्पॉट पर क्रैश बैरियर लगाने की मांग की थी लेकिन शायद विभाग हादसे का इंतजार कर रहा था। चालक के साथ-साथ लोक निर्माण विभाग की लापरवाही 32 लोगों को लील गई जबकि 30 से अधिक यात्री हादसे में गंभीर घायल होकर मौत से जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जिस स्थान पर बस अनियंत्रित होकर खाई में गिरी है, उस स्पॉट पर घुमावदार मोड़ है। एक ही प्रयास में मोड़ को काटना नौसिखिए चालक के वश में नहीं है। अनुभवी चालकों की टांगों में भी मोड़ काटते समय कंपकंपी आ जाती है। अधिकतर चालक बस को बैक कर ही इस मोड़ को काटने में सफल रहते हैं। क्षमता से अधिक यात्री बस में होने के कारण बस को मोड़ना और कठिन हो जाता है। वीरवार को भी कुछ इसी तरह का आलम था। चालक से मोड़ नहीं काटे जाने के बाद बस झटकों में पीछे खिसकती चली गई। देखते ही देखते बस खाई में लुढ़क गई। बस चालक ने बस गिरने से ठीक पहले खिड़की खोलकर बाहर छलांग लगा अपने आपको बचा लिया। मौके की नजाकत को भांपते हुए चालक फरार हुआ लेकिन लोगों ने उसे पकड़ लिया। सराज व बंजार विधानसभा क्षेत्र की सीमा वाले इस क्षेत्र में वाहन चलाना काफी जोखिम भरा रहता है।

बस चालकों को न प्रशिक्षण, न रफ्तार पर कसी लगाम फिर वही मगरमच्छी आंसू!

अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए फिर से लोगों का दिल रखने के लिए वही घिसी पिटी अपीलें व दलीलें। एक बार फिर लोगों के आंसू पोंछने के लिए जांच के आदेश। नियम कानून को सख्ती से लागू करने के बजाय आखिर कब तक ऐसी व्यवस्था चलती रहेगी। बसों में क्षमता से अधिक सवारियां बिठाना गैरकानूनी है।

मगर इन पर कार्रवाई कोई नहीं करता। करीब दो साल पहले मंडी में हुए एक निजी बस हादसे के बाद तत्कालीन परिवहन मंत्री जीएस बाली ने सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए निजी बस चालकों को प्रशिक्षण देने व ब्लैक स्पॉट की हालत सुधारने की बात कही थी। एक सरकार बदल कर दूसरी भी आ गई लेकिन यह कवायद सिरे नहीं चढ़ पाई। निजी बसों में आज भी सरेआम स्टीरियो बजते हैं। शान से चालक मोबाइल फोन सुनते हैं। एक-एक रुपये  की सवारी के लिए प्रतिस्पर्धा होती है।

यातायात नियम सूली पर टांगे जाते हैं। पुलिस बस मूकदर्शक बन नियमों की धज्जियां उड़ती देखती रहती है। सड़कों की हालत सुधारने के वादे होते हैं, लेकिन सुधार कब होगा कोई नहीं जानता? निजी बस को चलाने वाला चालक पहली बार ही इस रूट पर गया था। 

सड़क हादसे ने खोली आपदा प्रबंधन की पोल

निजी बस सड़क हादसे ने आपदा प्रबंधन की पोल खोल दी है। सूचना मिलने पर भले ही पुलिस व प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंची, लेकिन टीम के पास स्ट्रेचर एवं राहत व बचाव कार्य के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। टीम ने शवों को रस्सी के सहारे खाई से निकाला। राहत एवं बचाव कार्य में चार घंटे से अधिक का समय लग गया। समय पर सहायता न मिलने से कई घायलों की मौके पर ही मौत हो गई। अस्पताल में चरमराई

व्यवस्था

हादसे के बाद बंजार अस्पताल में अव्यवस्था का आलम देखने को मिला। घायलों के उपचार में चिकित्सकों व पैरामेडिकल स्टाफ की कमी खली। प्रशासन ने कुल्लू व आसपास के क्षेत्रों से बंजार डॉक्टर भेजना मुनासिब नहीं समझा। प्राथमिक उपचार के बाद घायलों को कुल्लू भेजकर जिम्मेदार  से पल्लू झाड़ने का प्रयास होता रहा।

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