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हिमाचल में जंगली गेंदे की खेती ने खाेले रोजगार के द्वार, तेल उत्‍पादन में नंबर वन हुआ प्रदेश, पढ़ें खबर

Himachal Wild Marigold Farming देश में जंगली गेंदा की खेती और तेल उत्पादन में हिमाचल पहले नंबर पर है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के सहयोग से विशेष प्रयास करते हुए देश में किसानों को जंगली गेंदा की खेती से जोड़ा है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Wed, 27 Jan 2021 09:32 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 09:32 AM (IST)
हिमाचल में जंगली गेंदे की खेती ने खाेले रोजगार के द्वार, तेल उत्‍पादन में नंबर वन हुआ प्रदेश, पढ़ें खबर
देश में जंगली गेंदा की खेती और तेल उत्पादन में हिमाचल पहले नंबर पर है।

पालमपुर, शारदाआनंद गौतम। Himachal Wild Marigold Farming, देश में जंगली गेंदा की खेती और तेल उत्पादन में हिमाचल पहले नंबर पर है। उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर व पूर्वी राज्यों में इसकी खेती प्रमुखता से होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के सहयोग से विशेष प्रयास करते हुए देश में किसानों को जंगली गेंदा की खेती से जोड़ा है। परिणामस्वरूप हिमाचल में जंगली जानवरों से परेशान ग्रामीणों के लिए गेंदे की खेती फायदे का सौदा साबित होने लगी। पूर्वजों की जिस भूमि को किसानों ने जंगली जानवरों के डर से बीजना छोड़ दिया था। अब उसी जमीन को फिर से फूलों की खेती में किसान उपयोग करने लगे है।

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जनजातीय जिला चंबा के भटियात की टिक्करी और सरूपड़ा पंचायतों में करीब पांच सौ कनाल भूमि पर गेंदा लगाया गया है। तीन सालों से गेंदे की खेती में मिल रही सफलता को देखते हुए अब किसान पूर्वजों की उस भूमि को भी प्रयोग में लाना चाहते हैं जिसे लंबे अरसे से बीजना छोड़ दिया था। यहां पर करीब दो से तीन हजार कनाल भूमि ऐसी है। इस भूमि पर पहले मक्की और आलू को प्रमुखता से लगाया जाता था। कुछ भूमि पर सेब की खेती होती थी, मगर जंगली जानवरों के डर से किसानों ने इन फसलों को लगाना छोड़ दिया था।

प्रगति किसान कल्याण समिति तला भटियात जिला चंबा ने करीब पांच साल पहले टिक्करी और सरूपड़ा पंचायतों में कार्य आरंभ किया। आज करीब डेढ़ सौ किसानों को समिति से जोड़ा जा चुका है। यह संख्या अब लगातार बढ़ रही है, क्योंकि तेल की कीमत और इसके गुणों को देखते हुए किसान इससे जुड़ रहे है। बुजुर्गो की जमीनों को जंगली जानवरों के डर से बीजना छोड़ दिया था। मगर गेंदे को जहां जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते वहीं इसकी खेती होने से जानवरों ने अब यहां का रुख भी बंद कर दिया है।

हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के निदेशक डाक्टर संजय कुमार का कहना है सीएसआईआर अरोमा मिशन के तहत साल 2017 में चंबा जिला की दो पंचायतों के किसानों की एक सोसायटी बनाई गई थी। सोसायटी के तहत दो प्रोसेसिंग यूनिट को लगाते हुए करीबन पांच सौ किसानों को गेंदे की खेती से जोड़ा गया। हिमाचल की जलवायु गेंदे के लिए उपयुक्त है। यही कारण है कि यहां पर संस्थान ने कांगड़ा, चंबा और मंडी जिलों में 23 यूनिटों को लगवाया है। जून माह में इसकी बिजाई करते हुए दिसंबर माह में इसका सीजन समाप्त हो जाता है। हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के माध्यम से टिक्करी और सरूपड़ा पंचायतों में अढ़ाई-अढ़ाई क्विंटल की मशीनरी को किसानों के लिए लगाया गया है। यहां पर वह अपनी फसल को लेकर आते हैं। इससे गेंदे का तेल निकाला जाता है। अब हिमाचल देश में जंगली गैंदा से तेल निकालने में पहले स्थान पर पहुंच गया है।

इन प्रजातियों का प्रयोग ज्‍यादा

गेंदा की तीन प्रजातियों का प्रयोग सबसे अधिक होता है। इनमें अफ्रीकन गेंदा जिसे टैंजेटिस इरेक्टा, फ्रेंच गेंदा टैंजेटिस पेटुला और जंगली गेंदा टैंजेटिस माइन्यूटा है। अफ्रीकन और फ्रेंच गेंदे के फूलों का प्रयोग पार्टी, विवाह समारोहों, गाड़ियों को सजाने और धार्मिक कार्यक्रमों में होता है। इसे गमलों और क्यारियों में लगाकर घरों और पार्को की सुंदरता को चार चांद लगाए जा सकते है।

जंगली गेंदे के तेल के उपयोग

कोक में फ्लेवर, तंबाकू के उत्पाद और कीड़ों को मारने के लिए दवाई बनाने में गेंदे के तेल का प्रयोग किया जाता है। बाजार में इसके एक लीटर तेल की कीमत छह से आठ हजार रूपये है। जंगली गेंदे का प्रयोग दवाईयों को बनाने में होता है। इसका सुगंधित तेल निकाला जाता है। गेंदे की पंखुड़ियों के रस को आंख की बीमारी और अल्सर के उपचार के लिए प्रयोग करते है। इसकी खेती करने से खेत में निमेटोड का प्रकोप भी कम हो जाता है। दक्षिण-पश्चिम हिमालय में एक हजार से अढ़ाई हजार मीटर तक ऊंचाई में यह प्रमुखता से होता है।

उत्‍पादन की स्थिति

  • 2018-2019  में 120 हेक्टेयर में 3.5 टन उत्पादन
  • 2019-2020 में 238 हेक्टेयर में 4.89 टन उत्पादन
  • 2020-2021 में 400 हेक्टेयर में 6.49 टन उत्पादन

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